यह तो सोचा ही न था

यह तो सोचा ही न था

हमें चाहने वाले कई लोग होते हैं जिन्हें हमारे दुख-तकलीफ़ों से कष्ट पहुचता है। वे लोग हमारे शुभचिंतक, मित्र, प्रियजन हो सकते हैं, लेकिन हमें कभी कभी विश्वास नहीं होता कि कोई हमारी इतनी परवाह भी कर सकता है? साकेत हिन्द की कुछ पंक्तियाँ ऐसे ही हालत को बयान कर रहीं हैं।

अश्क़ गिर पड़े उनकी आँखों से,
जानते ही हाल हमारा दूसरों से।
उन्हें हमारी इतनी फिक्र होगी,
यह तो सोचा ही न था।


वे गम को हमारे अपना समझ लिए,
इज़हार करने के लिए अश्क़ ही छलका दिए।
अब तो जोड़ लिया है एक रिश्ता हमसे,
यह तो ख्याल ही न था।


उन्होने अभी हमें जाना नहीं,
फिर भी फिक्र करते अपना समझकर।
वे इस कद्र मासूम भी हो सकते हैं,
यह तो जाना ही न था।


वे हमें जानते हैं उतना जितना हम उन्हें,
खुशी होती है जानकर कि चाहते हैं वे हमें।
हमारे साथ हैं- याद रखना होगा,
यह तो समझा ही न था।

~ साकेत हिन्द

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