श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव को जन्माष्टमी के रूप मे सभी भक्त हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। हिन्दी कलमकारों ने श्रीकृष्ण की कई वंदनाएँ इस मंच पर प्रस्तुत करने हेतु लिखीं हैं। रचनाकारों की भक्तिमय कविताओं को इस पृष्ठ पर पढिए।
राधे राधे
वृंदावन की गलियां झूमे
बोले राधे-राधे
आओ पधारो मेरो अंगना श्यामा
मेरे बिगड़े काम बना दे
वृंदावन की गलियां झूमे
बोले राधे-राधे
मैं बनावू माखन मिश्री
मेरो मोहना खावे
सुंदर सलोना देखो कितना
मनोहर मुरली बजावे
रस रसईया कैसे देखो
अपने रंग में रंगा दे
वृंदावन की गलियां झूमे
बोले राधे-राधे
पावन होयो धरती तोरे
मृदुल चरण से श्यामा
राधा के तुम कृष्णा बनते
सीता के हो रामा
यशोदा के नटखट लल्ला
हमें मथुरा गोकुल घूमा दे
वृंदावन की गलियां झूमे
बोले राधे-राधे
मेरो मोहन मेरो लाडलो
तुम गोवर्धन गिरधारी
भवसागर से पार लगा दो
हम आए शरण तिहारी
सुध बुध भूल हम झूम जाए
प्रभु ऐसी बंसी बजा दे
वृंदावन की गलियां झूमे
बोले राधे-राधे
मीरा सी दीवानी
सहज प्रेम हो मेरा, मन चन्दन सा सुगन्धित हो जाये,
मैं बन कर मीरा सी दीवानी तेरे नाम का जाप करूँ,
कभी राधा सी बन बस तेरे मन में वास करूँ,
फ़िर एक दिन कर के दुनिया की चंद रस्मे पूरी
मैं रुक्मिणी सी तेरी दुनिया में शामिल हो जाउँ,
कर के तीनो प्रेम रूप को धारण
बस तेरे रूह में बस जाऊँ,
हो अटूट-अमिट प्रेम हमारा,
हर सुख-दुख में हो साथ तुम्हारा,
तन-मन में समाये हो तुम मेरे श्याम,
हाँ मैं हूँ तुम्हारी अब जग ले चाहे कोई नाम।
कृष्ण कन्हैया
बाजै ढोल म्रदंग
बाजै शहनाई
गोकुल में धूम मची
जन्मे कृष्ण कन्हाई
नटखट मनमोहन
क्रष्ण कन्हैया
गोकुल में रास रचाये
बंशी बजैय्या
ऐसी बजाई बंशी
गोपियां सुध बुध भूली
लाज शर्म सब भूल
तुम्हारे पीछे पीछे हो ली
मदांध थे इन्द्र
दूर किया उनका अहंकार
जुल्मी था पापी कंश
किया उसका संहार
जब जब पाप
बढा धरती पर
तब तबले अवतार
हमे संकट से लिया उबार
हे नटवर कृष्ण मुरारी
हर लो हम सब की पीड़ा सारी
आओ प्रभू फिर से
के धरती पर पाप बढ रहा भारी
जन्माष्टमी – मुक्तक
नहीं कुछ भेंट हे भगवान् मैं अपने साथ लाया हूँ
मैं केवल प्रार्थना लेकर तुम्हारे द्वार आया हूँ।
मैने सब कुछ यहीं पाया यहीं खोया है मनमोहन
मैं खाली हाथ आया था मैं खाली हाथ आया हूँ।।
मैं आया हूँ प्रभु चरणों में याचक भावना लेकर
मेरेमन के विकारों की अखण्डित कामना लेकर।
इसे खण्डित करो,खण्डित करो खण्डित करो केशव
समर्पित मैं अहम् के वाण करने साथ लाया हूँ।।
लगा है आज भी उर मे कामनाओं का कांटा है
निरंतर भाबनाओं का उठता ज्वार भाटा है।
मिटा दो दर्द यह गहरा कृपा कर दो हे मनमोहन
भेंट करने सभी कंटक मैं अपने साथ लाया हूँ।।
प्रकट भये गोपाल
कारी भादौं रात थी, घिरी घटा घनघोर।
कृष्ण पक्ष की कालिमा, अँधियारी चहुँओर।
अँधियारी चहुँओर, घटायें गरज रहीं थीं।
लप-लप करतीं कड़क, बिजलियाँ चमक रहीं थीं।
कह ‘कोमल’ कविराय, तभी प्रकटे बनवारी।
थी भादौं की रात, भयानक कारी-कारी।
लेकर शिशु गोपाल को, धरे टोकरी शीश।
चले शीघ्र वसुदेव जी, लेकर सँग जगदीश।
लेकर सँग जगदीश, बाढ़ पर यमुना बहती।
पद-पंकज स्पर्श, करूँ कालिंदी कहती।
कह ‘कोमल’ कविराय, शेष फन छाया देकर।
शेषनाग ने किया, सफल यह जीवन लेकर।
मनमोहन को मीत बनाएं
आज स्वप्न साकार सजाएं
मन के सारे द्वंद मिटाएं।
जो सपनों में नित आए उस,
मनमोहन को मीत बनाएं।।
गीत प्रेम के गाने बाला
बंशी मधुर बजाने बाला।
प्रेम पाश में बांध के जिसको
प्रेमी ना-ना भांति नचाएं।।
मनमोहन को मीत बनाएं..
गीता के उपदेशों बाला
जग को राह दिखाने बाला।
संकट के क्षण धर्म-कर्म का,
हमको जो सद् मार्ग दिखाएं।।
मनमोहन को मीत बनाएं..
कर्मयोग की जो मूरत है
संघर्षों की वो सूरत है।
दुष्टों का वध करने वाले को,
हम नित नित शीश झुकाएं।।
मनमोहन को मीत बनाएं…
चलो प्रेम के दीप जलाकर
मन से सारे द्वैष मिटाकर।
सप्त सुरों से प्रेम की आओ,
मिलकर बंशी मधुर बजाएं।।
मनमोहन को मीत बनाएं।
श्रीकृष्ण भगवान
भगवान कृष्ण की महिमा अपार
तुम सबके हो पालनहार
भक्तों का करते बेड़ा पार
पापियों का करते उद्धार
जब जब बड़े धरती पर पाप
ऋषियों पर जब बडा संताप
देवताओं ने किया प्रभु का जाप
तब प्रभु धरती पर आए
अत्याचार मिटाने हेतु लिया कृषणावतार
अष्टमी की आधी रात प्रभु जन्मे कारागार
वासुदेव देवकी की आठवीं संतान
जेल मे रची ऐसी माया
जिस को कोई समझ न पाया
आंधी झूली बादल बरसाया
पहरेदार को भरमाया
सब को किया अचेत वासुदेव को जगाया
आ गए जगत के तारणहार
स्वत खुल गए कारावास के द्वार
वासुदेव ने भगवान को बृंदावन मे छोड़ा
विधाता ने ऐसा नाता जोड़ा
नंद यशोदा ने उन्हें पाला
सब का चहेता नंदलाला
पूतना का किया संहार
बकासुर को दिया मार
कालिया नाग का फन मर्दन किया और दिया उसे तार
बाल ग्वाल से करता प्यार
गोपियों संग रास रचाई
ग्वालों संग गैया चराई
मुरली बजाई लीला दिखाई
माखन चुराया मटका फोड़ा
इंद्र का दंभ और घमंड तोड़ा
इंद्र ने भयंकर मेघ बरसाया
उंगली से गोवर्धन पर्वत उठाया
लोगों को भयानक बादलों से बचाया
कंस ने कृष्ण को समाप्त करने के किऐ अनेक उपाय
कोई भी सफल न हो पाए
पापी कंस को मार कर धरती का हल्का किया भार
मथुरा नगरी को दिया तार
कुबड़ी कुब्जा का किया उद्धार
कंस के ससुर जरासंध ने मथुरा पर की चढाई
दाउ और कृष्ण की जोड़ी ने सत्रह बार जरासंध पर विजय पाई
संदीपन गुरु के आश्रम गए बलराम और कन्हाई
अल्पकाल विधा सब पाई
सुदामा को अपना मित्र बनाया
उससे मित्रधर्म निभाया
विपन्न से उसे संपन्न बनाया
धन्य हो प्रभु और तेरी माया
जिसका अंत किसी ने न पाया
मथुरा छोडी द्वारका बसाई
रणछोड कहलाए कृष्ण कन्हाई
पांडवों के ममेरे भाई
उन पर अपनी कृपा बरसाई
लाक्षागृह से जान बचाई
पग पग दिया उनका साथ
अधर मे कभी न छोड़ा हाथ
यदुकुल भूषण कृष्ण मुरारी
सुंदर छवि बडी है प्यारी
असमंजस मे थी विदर्भ की राजकुमारी
रुक्मिणी की विपत्ति हरी
शिशुपाल से उसे बचाया
रुकमिणी से विवाह रचाया
उसे अपनी पटरानी बनाया
सत्यभामा और जामवंती को भी अपनाया
जब द्रौपदी पर संकट आया
उसे बचाने कृष्ण आया
महाभारत मे दिया पांडवों का साथ
अर्जुन के बने सारथी
दिया गीता का ज्ञान
विराट रुप उसे दिखलाया
युद्ध मे मनोबल बढाया
कूटनीतिक थे कृष्ण महान
कूटनीति से द्रोणाचार्य और कर्ण मरवाया
अपनी माया से युधिष्ठिर को भरमाया
सत्यवादी धर्म राज से झूठ बुलवाया
महाभारत का युद्ध जिताया
हस्तिनापुर मे पांडव राज्य बसाया
योगेश्वर कृष्ण कर्मयोगी महान
करें हम सब उनका गुणगान
मीरा के प्रभु गिरधर गोपाल
भक्तों का सदा रखें ख्याल
कृष्ण का कर्म ही धर्म उनका पैगाम
करूँ सदा कान्हा को प्रणाम
राधारानी- बिन श्याम अधूरी
नटखट शलोना रूप मेरा
मृद कमल सा नैन
नित्य पुकारे अधर श्याम
देख तोहे मिले चित्त को चैन।।
गोपी ग्वाले झूमे गाए
कान्हा जब बंशी बजाए
सुन तोरी मधुर स्वर मन
मोरा मुग्ध हो जाए ।।
सुन सखियाँ से तोरी बड़ाई
उठे मन में इर्ष्या, करू संग लड़ाई
माखन मिश्री प्रिय तोहे
मन ही मन तोहे खिलाउ।।
करती तोरी लीला हर्षित मोहे
खो जाऊ लिए मधुर स्वपन संग तोहे
यमुना तीरे श्याम पुकारे
मोहिनी मूरत नित्य निहारे।।
रूठो तो मनाऊ, रख कान्हे सर साँवरे तोहमें खो जाऊ
मनभावन लागे जग सारा
प्यारी लगी ऋतुएँ सारी पर
तुम बिन अधूरी हूँ श्याम
बिन तुम्हारे क्या रूप क्या श्रृंगार।।
मोहन~ हुमांशु साहू
पंख़ मोर के सिर साजे
बाल मुकुट जड़े मोती भावे,
मुरली लटके कमरबंध जो
परम गति आनंद सुख पावे,
वस्त्र वर्ण पीत पहने
भीत सांवला रंग;
बाल सखा संग चल पड़े
देखो ब्रज के मोहन ।
पूरा जगजीवन जिनमें समाये,
चराचर के आत्म में भी जिनके नाम लिखाये;
जग के भार से परे दो नयन,
पीत रंग जो विस्तृत गगन;
त्रिलोक में जिनके नहीं कोई समतुल्य,
पर दुई तुलसीपत्र-प्रेम के से
तुल गए राधा के मोहन।
भरम करते हैं लोग तुझ पर,
खड़ा है तू डेढ़ पैर में हाथों में लिए मुरली बजाये,
या बैठा है कहीं माखन लिए लोग तुझे झूला झुलाये;
जग था जिसके लिए काला सिर्फ विदित श्याम रंग ,
बात समझी ये उसने जिसको दिखता सिर्फ तेरा वदन;
अब तो गीत में भी तू ही है उसके,
हे सूर के मोहन।
कुरूक्षेत्र के इस युद्ध में,
विचलित है मेरा भी मन
तीर पड़ा है तरकश में
चल रही उल्टी दिशा में मेरी आशा का पवन,
म्यान से न उठाया जा रहा तलवार;
हट रहे हैं पहिए पीछे रथ के,
तुम थाम लो बागडोर,
या फिर पार्थ समझ मुझको
तुम दे दो गीता का किंचित ज्ञान
हे मेरे मोहन
दे दो गीता का किंचित ज्ञान।
राधा कृष्ण प्रेम
राधा कृष्ण का निश्छल प्रेम प्रेरणा स्रोत विश्व का है,
प्रेम की पराकष्ठा हैं वो हर प्राणी उनके तत्त्व सा है
है सन्देश उन्ही का ये निष्काम भाव से प्रेम करो,
सद्भाव धर्म से कर्म करो विपत्ति से किंचित ना डरो
रखो पवित्र गंगा सा मन संकट में प्रभु को सुमिरो,
सुख दुःख तो बस एक माया है ये बात कभी ना तुम बिसरो
हे प्रभु मेरे हे नाथ मेरे सब भूलों को मन से भूलो,
हम सब तो तेरे बालक हैं अज्ञान जान कर कृपा करो
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SWARACHIT1485A | राधे राधे |
SWARACHIT1485B | मीरा सी दीवानी |
SWARACHIT1485C | कृष्ण कन्हैया |
SWARACHIT1485D | जन्माष्टमी – मुक्तक |
SWARACHIT1485E | प्रकट भये गोपाल |
SWARACHIT1485F | मोहन |
SWARACHIT1485G | मनमोहन को मीत बनाएं |
SWARACHIT1485H | श्रीकृष्ण भगवान |
SWARACHIT1485I | राधारानी- बिन श्याम अधूरी |
SWARACHIT855 | राधा कृष्ण प्रेम |