JULY-2020: १) मधुकर वनमाली रचित उमर बत्तीस की • २ ) नीकेश सिंह यादव रचित मैं तेरे बिन अधूरा हूं • ३) अंजली सिंह रचित पुरुषत्व
१) उमर बत्तीस की
भैया तुम को क्या बतलाएं
कितनी उमर हमारी है
छोकरों में तो फिट ना बैठें
बुदढे कहते छबारी है
थोड़े दूधिया थोड़े कोयले
नही रहे अब केश घनेरे
एक मन करता वासमोल का
फिर जी कहता पके हैं थोड़े
कभी जो गुजरे मैदानों से
मन करता खेले लड़कों संग
पड़ अपनी ये भागादौड़ी
कहां तनिक ले पाते हैं दम
कभी कभी मंदिर हो आते
सत्संग में कुछ कह जो जाते
चिढ़ कर पांड़े बाबा कहते
उमर है कितनी हमें सिखाते
वय संधि का दारुण दुख है
कुछ बालाएं अंकल कहती
कुछ हँसती है तोंद पे मेरे
जिन की सूखी हड्डी दिखती
दो बच्चों का बाप हुआ हूं
मैंने कहां कुछ पाप किया है
उपर वाले लीला तेरी
सब कुछ अपने आप हुआ है
कभी जो कुर्ता भड़कीला हो
श्रीमती जी आंख दिखाती
कहां को निकले शाम ढले तुम
कौन तुम्हें है मिलने आती
बिजली वाले उस दफ्तर में
जींस पहन के गया कभी था
साहब ने थी डांट पिलाई
दिन बन आया बाकी सभी का
जितने थे अरमान हमारे
भईया सब अब खाक हुए हैं
जब से उमर है बत्तीस आई
दिल के सोलह फांक हुए हैं।
२) मैं तेरे बिन अधूरा हूं
मोहब्बत मुझको भी तुमसे, मोहब्बत तुमको भी मुझसे।
तू मेरे बिन अधूरी है, मै तेरे बिन अधूरा हूं।।
मेरे दिल में जो छिपा है, वो कैसे तुमसे मै कह दू।
मोहब्बत हम जो करते है, वो दुनिया से मै कह दू।।
गुजरते वक्त ने ना जाने क्या क्या, वफाएं हमसे मांगी है ।
मै वफाओं को मुकम्मल ना करू, तो ये कैसी चाहत है।।
तू मेरे बिन अधूरी है मै तेरे बिन अधूरा हूं…
मोहब्बत का ये किस्सा, बड़ा अधूरा होता है ।
दो दिलों के मिलने पर भी, ना ये पूरा होता है।।
सारे ज़माने की बंदिशों ने, आके हमको घेरा है।
कभी दिल तोड़ा मेरा है, कभी दिल तोड़ा तेरा है।।
तू मेरे बिन अधूरी है मै तेरे बिन अधूरा हूं…
कभी अकेले जो गुजरे शाम, तो तेरी याद आती है।
कभी मीठी याद तेरी, कभी मेरी जान जाती है।।
कुछ यूं है ये किस्सा मोहब्बत का।
कुछ तेरी कहानी है, कुछ मेरी कहानी है।।
तू मेरे बिन अधूरी है मै तेरे बिन अधूरा हूं…
३) पुरुषत्व
उसके जिस्म पर ही तुम,
अपना हक जता सकते हो।
रूह तक तो,
इबादत करके ही जा सकते हो।
मिली ना वो,
तो उसे एसिड से जला सकते हो।
अपनी विकृति का तुम,
इससे ज्यादा क्या खेल दिखा सकते हो।।
मुस्कान छीन कर उसकी,
तुम उस पर ही दोष लगा सकते हो।
हक दिया है जमाने ने तुम्हें,
इसलिए अपने पुरुषत्व का तुम रौब जमा सकते हो।
सम्मान को रौंद कर उसके,
तुम निर्दोष कहला सकते हो।
गलती तुम्हारी नहीं …..
उसके कपड़ों की है,
तुम सबको ये भी तो बता सकते हो।।
आंसू देकर उसे,
तुम मुस्कुरा सकते हो।
बर्बाद करके उसे तुम,
भूल कर जा सकते हो।
दीवाना कहकर उसका,
खुद को झूठा दिलासा दिला सकते हो।
अपने स्वार्थ के लिए, उसे तबहा कर दिया,
अब अपना नया घर बसा सकते हो।।