July-2021: 1) रोटी और बेटी ~ चाँदनी झा, 2) उत्कर्ष – महिमा प्रियम्वदा, 3) उसने बहुत रुलाया है ~ गोविंदा चौधरी (आदित्यराज)
१) रोटी और बेटी
हर किसी की भूख मिटाती रोटी,
अमीर हो या गरीब सबको भाती रोटी।
एक रोटी की खातिर हर सितम गवारा,
रोटी के लिए यहाँ लोगों ने सबकुछ हारा।
हर कोई जीता यहाँ बस रोटी के लिए,
रोटी की ही राजनीति है बस दुनिया में जीने के लिए।
आओ जाने रोटी की महत्ता समाज में
रोटी और बेटी है बहुत अनमोल,
पर आज के समाज को पता नहीं इसका मोल।।
खेल है यहाँ सब रोटी का।
मोल नहीं कोई यहाँ बेटी का।।
सुखी रोटी बासी रोटी,
गोल और पतली रोटी।
दाल रोटी, मक्खन रोटी,
हर किसी की पेट भरती रोटी।।
रोटी के खातिर रोज होते गोरखधंधे,
बेटी को भी यहाँ छोड़ते नहीं बन्दे।
कभी रोटी के खातिर, कभी बेटी के खातिर,
बिका यहाँ बाप का हर जर्रा-जर्रा।
फिर भी दहेज के दानवों को,
लोभी, लालची मानवों को,
दिखता नहीं आँसू का एक भी कतरा।।
कोई रोटी के खातिर जाये परदेश,
हर बेटी छोड़े बाबुल का देश।
रोटी, बेटी से जुड़ी अस्मिता समाज की,
भूखे न रहें, बिटिया जाये बियाही,
बस इसी फिक्र में बीते दिन और रात भी।
एक ही पहलू में आते रोटी और बेटी,
इस जुल्मी और जालिम समाज की।।
एक सुखी रोटी की कीमत भूख को पता है,
बेटी होती अनमोल यह माँ- बाप जानता है।
२) उत्कर्ष
आहिस्ता आहिस्ता जैसे शांत हो गयी,
अनगिनत बातों, अनकहे अल्फाज़ो को,
समेटे हुए कही गहरे समंदर में छिपे जीवन जैसे,
उन सुर्ख आंखों में आधे चाँद जैसी सुंदरता,
चंचलता और उत्साह से मिलन के सभी राह अब,
मानो शांत रेगिस्तान के सकरे रास्तों पर कहीं,
गुमनाम सा मुसाफिर बस यों चलता जा रहा,
प्रीत के रंग में रंगी कोई एल्बतरोस जोड़ी बस,
अपने जीवन के उस रूह की महक लिए,
जिंदगी के हर मोड़ पर साथ देने का वादा लिए,
बस हर बंधन से मुक्त प्रेम को पाकर,
अपने जीवन रूपी लक्ष्य को और खुद को बस,
उत्कर्ष और सेवा की पराकष्ठा को पाने की धुन में,
उस बाज की तरह सबकुछ अनदेखा किए बस,
बढ़ते जा रहा,घंटो बारिस की थपेड़ो से जूझते हुए,
काले बादलों और झंझावातों के अपने कड़े अनुभव को,
जीवन रूपी अनुभव से खुद को अग्रसर किये है और
अंततः अपने कर्मो से लक्ष्य को दूर से देखते हुए बस
अग्रसर है,अग्रसर है और अग्रसर है
३) उसने बहुत रुलाया है
हमने खुद को झुठलाकर उसे सच्चा बताया है
हमने उसे अपना माना उसने बहुत रुलाया है
जब भी सोचा है हमने बस उसको ही सोचा है
उसने हमें कभी झूठ तो कभी सच बताया है
झगड़ा किया है उसकी खातिर हमने अपनों से
उसने हमें कभी अपना तो कभी गैर जताया है
हर बार उसके गलतियों पर माफी दिया है उसे
उसने जब चाहा रुलाया जब चाहा हंसाया है
अब नहीं कहना हमें कुछ उसके अपने बारे में
राज़ जो वादा किया हमने अबतक निभाया है