June-2021: 1) सुकून के कुछ पल बिताते हैं ~ चाँदनी झा, 2) कड़वा सच – डॉ. राहुल भारद्वाज, 3) मैं बूढ़ा हूँ, मेरे साथ वक्त बिताया करो आकर ~ भरत कुमार दीक्षित
१) सुकून के कुछ पल बिताते हैं
चल वहाँ जाते हैं, सुकून के कुछ पल बिताते हैं,
चल वहाँ जाते हैं, अपनी दुनिया बसाते हैं।
कुछ अपनी कहना, कुछ मेरी सुनना,
हमें एक दूसरे की है चाहत कितनी।
चलो इस जहाँ को बताते हैं।।
मैं तुझमें खो जाऊँ, तू मुझमे समा जाओ,
चाहत में कुछ ऐसा ही कर जाते है।
तेरे, मेरे दरम्यां न हो कोई फासला,
चलो न ऐसा ही एक पल बिताते हैं।
मुझे सिर्फ तेरी फिक्र, तुझे सिर्फ मेरी कदर हो जहाँ,
चलो ऐसा ही एक आशियां बनाते है।
मैं गीत गाऊँगी, तुम गजल सुनाना,
ऐसी ही हम एक दूसरे को, दिल की बातें बताते हैं।
इस जहाँ से बेख़बर, हर रंजो गम से दूर,
सिर्फ खुशियां ही खुशियां हो जहां,
ऐसा ही एक जहाँ बसाते हैं।
न तेरे खोने का गम, न मेरे बिछड़ने का दर्द,
ऐसा ही होगा सनम, ऐसे ही अरमान सजाते हैं।
मैं तुमसे बिछड़ के जी न पाऊँ, मेरे जाने से दूर तुम घबराओ,
चलो न अब हम अपनी प्यास बुझाते हैं।
क्यों जी रहे हैं तड़प तड़प के?
तेरे मिलने का ख्वाब मुझे और जलाते हैं।
चल वहाँ जाते हैं, जहाँ मिले थे पहली बार,
फिर से उसी दुनिया मे खो जाते हैं।।
२) कड़वा सच
कोरोना का रूप सृजन कर, नव संकट ने चेताया,
विकसित मानव हुआ है कितना, सबकी समझ में आया।।
कोई किसी का नहीं यहां पर, इसने ऐसे समझाया,
भाई, भाई के पास ना आया, जब उसका शव आया।।
कुछ लोगों ने मानवता को, ऐसा शर्मसार किया,
मृत शरीर को, नाव बनाकर, गंगा जी में तार दिया।।
चोरी ऐसी चली जोर से, ना जीवन का मोल रहा,
जीवन रक्षा करने वाला, खुले भाव अब बोल रहा।।
बैट बॉल का खेल भी देखो, कितना हुआ जरूरी,
राजनीति में दिखी कहीं ना, दो गज की भी दूरी।
राजनीति के दो चेहरों का, खुलकर पर्दाफांस हुआ,
राजा जी का व्यस्त समय में, बांग्ला ही में वास हुआ।।
आरोपों की आवाजों में, मौतों का चीत्कार दबा,
तनिक ना करूणा, जगी हृदय में, राजनीति की लगी हवा।।
बेबस और लाचारी से, दिल, दीन जनों का कांप गया,
जय चुनाव उद्घोष की खातिर, तालाबंदी श्राप दिया।।
ऐसा दृश्य दिखा धरा पर, सांसों के भी मोल हुए,
कुछके अपने गए जहां से, कुछ रत्न अनमोल गए।।
कहीं फर्क ना पड़ा किसी को, लाशों के बिछ जाने से,
उनको केवल मतलब है, वापस आने और पाने से।।
अतः निवेदन करता तुमसे, मेरा गीत सुनहरा,
जान तुम्हारी बचा सकेगा, सांसों पर सजा पहरा।।
दो गज की दूरी को जब, तुम अपनी ढाल बना लोगे,
विश्वस्त हुए ये लिखता हूं, तुम इस पर काबू पा लोगे।।
३) मैं बूढ़ा हूँ, मेरे साथ वक्त बिताया करो आकर
मै बूढ़ा हूँ, मेरे साथ वक़्त बिताया करो, आकर
कुछ मेरी सुनो, कुछ अपनी सुनाया करो, आकर
ये सिलवटें, ये झुर्रियाँ, केश श्वेत से जो है,
ये धूप में नही पके, सुन तो ज़ाया करो, आकर|
हालाँकि कि ये दौर रफ़्तार में है बहुत,
मैं बूढ़ा ठहरा, उँगलियाँ पकड़, चलाया करो, आकर
आहिस्ता आहिस्ता, यूँ चलते चलते, मेरे साथ
मेरा तजुर्बा सुनो, कुछ अपने बताया करो, आकर|
समय कम तुम्हारे पास, साँसे कम हमारे पास,
बहुत कुछ बताना है, सुन तो ज़ाया करो, आकर
तल्ख़ है, तरन्नुम है, ज़ख़ीरे अनुभवो के है बहुत,
मतलब का ले लो, बाक़ी फ़ेक ज़ाया करो, आकर
मै कितना बचा हूँ, समझ तो लो आकर,
फिर जैसा मन हो, क़यास लगाया करो जाकर,
मै कितना काबिल हूँ, परख तो लो आकर,
जितना बचा हूँ, अपने मुताबिक़ ज़ाया करो जाकर।
मै बूढ़ा हूँ, मेरे साथ वक़्त बिताया करो
मैं चाहता हूँ, मुझे अपने हिसाब से खर्च करो जाकर।
मै बूढ़ा हूँ, मेरे साथ वक़्त बिताया करो, आकर
कुछ मेरी सुनो, कुछ अपनी सुनाया करो, आकर