ज्योति कुमारी

ज्योति ने बीमार पिता को गुरुग्राम से दरभंगा साइकल पर बिठाकर पहुंचाया; १२०० किलोमीटर से की दूरी तय करने वाली ज्योति की सराहना इवांका ट्रंप ने भी की है।

देश की ज्योति

कोरोना महामारी के इस दौर में जहाँ अनगिनत घटनाएं देखने-सुनने को मिल रही है। वहीं इन्ही घटनाओं में कुछ ऐसी असाधारण घटनाएं भी निकल कर आती है जो देश, सरकार, समाज और व्यक्ति को कुछ दिखा जाती है, कुछ सीखा जाती है। इन्ही घटनाओ में से एक घटना बिहार की १५ वर्षीय ‘ज्योति कुमारी’ से सम्बंधित है। जो स्वयं दृढ़ -संकल्प और साहस का जीता जागता उदाहरण बनी है। प्रस्तुत कविता उसके इसी शौर्य-गाथा का बखान करने के साथ-साथ थोड़ा अन्य ज्वलंत मुद्दों की तरफ भी ध्यान खींचती है।

एक किशोरी बिहार की,
बिटिया भली वो तात की।
लाचार पिता की सेवा करने को,
आई थी एक अंजान शहर को।
पर महामारी के महासमर में,
फँस गई वो अज़ीब भंवर में।
फिर उसने कुछ मन में ठाना,
जैसे भी हो अब घर को जाना।
साइकिल सवारी से है अपनी यारी,
यहीं दूर करेगी अपनी लाचारी।
सोंच यहीं, ले जनक को निकल पड़ी,
साइकिल उसकी चल पड़ी।
गुरुग्राम से दरभंगा की दूरी,
सोचो, बिटिया कैसे करेगी पूरी।
पर साहस की दहाड़ लगाई उसने,
पहाड़ सी मुश्किलों से पार पाया उसने।
नित्य चली, चलती रही,
थकी नहीं, थमी नहीं।
सैकड़ों मीलों का पत्थर पार किया,
चंद दिनों में दूरी का हिसाब किया।
आख़िर साहस और संकल्प से,
संग पिता जुड़ गई अपनी मिट्टी से।
ऐसे संघर्ष-सफ़र को दुनिया ने जाना,
बेटी के शौर्य और संकल्प को भी माना।
एक साधारण असाधारण कर गई,
देश की बेटियों की आदर्श बन गई।
पर अब देखो नेताओं का खेल,
जिसके कर्म औ वचन का न होता मेल।
महानुभावों के बीच अब रेस ही लग गई,
‘अपना हूँ’ बताने का होड़ सी मच गई।
‘सी.एफ.आई’ ने भी ह्रदय में उतारा है,
मेधा खोज का बड़ा-सा तीर मारा है।
पर यह बिटिया नहीं है नाम की भूखी,
भर-पेट भोजन चाहे ही हो रूखी-सुखी।
और वह भी आगे पढ़ जाये,
जीवन में कुछ अच्छा कर जाये।
बस! यहीं मात्र उसकी इच्छा है,
अब मालिकों की असल परीक्षा है।
अक्सर ही इस मिट्टी में  ‘ज्योति’ हैं जलते,
पर किस्मत के धनी को ही ‘इवांका’ मिलते।

विनय कुमार वैश्कियार 
कलमकार @ हिन्दी बोल इंडिया

बेटियां बोझ नहीं है

साहब बेटियां बोझ नहीं है, आज के जमाने में
पीछे हट नहीं रही परिवार के लिए कमाने में!
कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है लड़को के
पारंगत है ये अपनी जिम्मेदारी निभाने में!
घर औऱ ससुराल के रिश्ते बखूबी निभा जाती है बेटियां
इज्जत बचाने दोनों घर की बहुत कुछ छुपा जाती है बेटियां!
मुझसे तो घर की जुदाई कुछ पल नहीं सही जाती
पता नहीं ये हुनर कहाँ से ले आती है बेटियां!
कभी बेटी ज्योति बनके बीमार पिता को लेकर
साइकिल से 1200 किलोमीटर सफर कर जाती है!
तो कभी मां रजिया बेगम बनके अपने बेटे को
1400 दूर सफर तय कर वापस ले आती है!
बिखरे रिश्ते को समेटकर घर को स्वर्ग बना जाती है
कुछ तो खास है इनमें, यूँ ही नहीं लक्ष्मी कहलाती है!
पीछे कभी हटती नहीं देश के लिए कुछ कर जाने में
और साहब बेटियां बोझ नहीं है, आज के जमाने में!

वीरू अग्रवाल
कलमकार @ हिन्दी बोल इंडिया

बिहार की ज्योति

जब हौसलें जिद पर आते, तो पर्वत भी झुक जाते हैं।।
टकराते हैं जो तूफां से, वे निश्चित मंजिल पाते हैं।।

नहीं कभी कुछ कर पाता, जो आगे को नहीं बढ़ता है।
हर बाजी आप गंवाता है, जो हिम्मत से नहीं लड़ता है।।

देखो भारत की बेटी में, कैसी अद्भुत सी क्षमता है।
है बड़ा दिव्य साहस मन में, दिखती न कोई विवशता है।।

हे ज्योति! तेरा पितृ प्रेम, इस आसमान से बड़ा हुआ।
मीलों लम्बी थी राह मगर, तुझमें ऐसा विश्वास चढ़ा।।

कि बिठा पिता को पृष्ठ भाग, तू उसको घर अपने लायी।
थी राह कठिन जीवन पथ की, न फिसली तू न घबरायी।।

है धन्य धरा भारत माता की, जहाँ जीवटता हरदम है।
विपरीत भले ही समय रहे, विश्वास नहीं होता कम है।।

पारस शर्मा मसखरा
कलमकार @ हिन्दी बोल इंडिया


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