कातिल इश्क

कातिल इश्क

कलमकार प्रिंस कचेर “साक्ष” इश़्क को कातिल संबोधित करते हुए कुछ पंक्तियाँ लिखते हैं।

तुम भी खामोश हो, मैं भी खामोश हूं
फासले ही बचे, दोनों के दरमियां

झूठे वादे किए,झूठी कसमें देिये
क्यों बढ़ाई थी तुमने, यह नज़दीकियां

मै तो गैर था,‌ ना किसी से बैर था
तेरे शहर से पूरा‌ मैं अंजान था

जैसे बादल के संग बूंदे आती निकल
वैसे पल भर का मैं भी मेहमान था

मैं भी मासूम था, थोड़ी मजबूर था
फसता ही मैं गया, रिश्तो कि डोर में

यकी तुमपे मै, फिर भी करता रहा
मै तो तिल-तिल,घुट-घुट के मरता रहा

~ प्रिंस कचेर “साक्ष”

Leave a Reply


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.