कोरोना महामारी के कारण हुए लॉकडाउन से दिहाड़ी मजदूर की पलायन करने की हृदय विदारक व्यथा को व्यक्त करने की एक कोशिश कलमकार सूर्यदीप कुशवाहा ने की है।
मैं गरीब हूं
बदनसीब हूं
लॉक डाउन है
बच्चे रो रहे हैं
बस ट्रेन भी बंद है
कोई उम्मीद नहीं है
फैसला लेता हूं
पैदल चलता हूं
गाँव लौटता हूं
भूख से व्याकुल हूं
डरता भी हूं
पर चलता हूं
सब घरों में सुरक्षित
सरकार करे संरक्षित
देश के हम भी हैं
फिर क्यों नहीं सोचें हैं
पलायन करने को मजबूर है
गाँव से बहुत दूर हैं
पैरों में पड़े छाले हैं
फिर भी निराले हैं
कहीं कहीं लट्ट भी खा रहे हैं
कहीं भलमानुस भी मिल रहे हैं
साहब कोरोना टेस्ट कराके ही पहुँचा दो
पाजीटीव निकले तो हॉस्पिटल पहुंचा दो
हौसला रखता हूं
इसीलिए पैदल चलता हूं।– सूर्यदीप कुशवाहा