मजदूर की दुर्दशा

मजदूर की दुर्दशा

दिखा रहा अपना रौद्र रूप ये महामारी हैं,
गरीब मजदूरों की बढ़ती ये लाचारी हैं।
लॉक डाउन के दौरान,
फैक्ट्री में फंसे थे मजदूर चार।
मालिक मौका देख हो गया फरार,
छोड़ दिया तड़पते उन्हें बिना अनाज।
भूख ने ले ली उसकी जान,
देखने न गया कोई द्वार।
परिवार से दूर था,
रोटी कमाने निकला था।
माँ का लाडला था,
होटो की मुस्कुराहट था।
आह! कराह उठा हृदय मेरा,
देख दुर्दशा मजदूरों की।
जिनसे चलता देश हमारा,
वो चल रहे नंगे पांव सड़को पे।
दो जून निकले थे कमाने रोटी,
उसकी किस्मत निकली खोटी।
देख दृश्य मेरा हृदय रो पड़ा,
न साधन हैं, न सहारा कोई,
परिवार से मिलने, कांधे पर गठरी लादे,
निकल पड़े हैं सड़को पर।
चले थे गले लगाने,
वर्षो बाद अपने परिवार को।
मृत्यु देवी को भी दया आ गई,
देखी न गयी उनकी ये कठिनाई।
अपने बांहों को फैला,
सदा के लिए उन्हें सुला गई।

~ पार्वती पंडित

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