मजदूर हैं भले वो मजबूर बो नही है
गलती है रोटियों की मगरूर वो नहीं है
मरते है वो सड़क पर सरकारी आंकड़ों में
देकर के चंद पैसे भिखमंगे वो नही है
हर अमीर से छले वो पैदल ही तो चले वो
मंजिल है दूर कितनी लेकिन तो क्या करे वो
है आस जिनसे उनकी सुनते नही वो इनकी
मतदान तो हो चुका है इनकी क्यो सुने वो
देखे जो पैर छाले बच्चों को है सम्हाले
इंसान है तो वो भी गोरे हो चाहे काले
माना है ये गरीबी कितनो की है नसीबी
लगती है भूख उनको किसी घर के हैं उजाले
तुम सोते मखमली में वो सोते हर गली में
फुटपाथ घर है उनका रहते है हर कुली में
सम्मान क्या है उनका अपमान क्या है उनका
बस आस काम की है तितली को है कली में
रखी है खेती गिरवी बीबी है बच्चे फिर भी
बेटी की शादी की थी कर्जा लिया था तब भी
पैसे को जोड़ना क्या कट जाए बस ये जीवन
हो जाए पूरा सब कुछ आ जाए मौत जब भी
~ सुमित सिंह तोमर