थकान का एहसास होने पर आराम करने का मन करता है। कलमकार खेम चन्द ने अपनी कविता में लिखा है कि कभी-कभी थकान मिटाने के लिए प्रियजन के कंधों की आवश्यकता पड़ती है।
कंधो पे अपने तुम मुझे सोने दो
अपना न सही किसी और का तो होने दो॥
थक चुका हूँ सफर में बीज प्यार का बोने दो
जरा दो पल ठहर जा ऐ जिन्दगी! थोडा़ सा तो रोने दो॥
मिलेगी खुशी तुम्हें जो बचा था कहीं उसे तो खोने दो
यूं ही न मोड़ो मुख अपना सूरत को बस जाने दो॥
मौका मिला है बात करने का थोडा़ मुझे भी सुनाने दो
मिलेगा सुकून दिल को पास बैठ कर आँखों को भीगोने दो॥
चले हो छोड़कर साथ हमारा वफा का हिसाब कर लेने दो॥
मिलोगे जब किसी मोड़ पर थोडा़ सा मुस्कुरा लेना
बीते संग जो पल उन्हें जरा फिरा लौटा देना॥
महफ़िल मे जरा आज फिर वही सम्मा बना दो
कहाँ है शख़्स वो खास जरा सामने बुला लो॥
थोडी़ सी हंसी तुम हमारे लबों की लौटा दो
जला कर आशियाना हमारा कहते हो बस्ती बसा लो।।
क्या खता थी हमारी अब तो बता दो
बेवफा मासूम सा चेहरा परदा अब हटा लो।।
हो चला है नशा साकी जाम भी गम वो जुदाई का बना लो।।~ खेम चन्द
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