किताब स्वयं में है संसार आओ चलें पाठ करें
किताब नहीं कोई व्यापार, आओ चले पाठ करें
किताब की जैसी मां मेरी है
जो कहती पल में, सब तेरी है
इसमें नदियां है व इसमें झील
चलना होता है लंबे मील
शाख व पत्ते पेड़ भी रहते
भौवरें गुन गुन गीत भी कहते
सागर की लहरें है बहती
पर पीड़ा की तकलीफ़ भी सहती
सुख दुख का समुंदर भी है
द्वेष घृणा की छप्पर भी है
किताब तेरा घरबार है आओ चलें पाठ करें
वन वादी है इसमें जी भर
पाताल से लेकर सारी अंबर
खनखन चूड़ी मां बहनों की
सुमधुर ध्वनियां हर गहनों की
झरने झरते है पल पल भी
नदियां करती है कल कल भी
प्रेम मुहब्बत तलाक भी है
शबनम जैसी वो पाक भी है
इसमें भरे है सबके रिश्ते
महंगे सारे और भी सस्ते
किताब तेरा चमत्कार है आओ चलें पाठ करें
इसमें भाई रिवायत भी है
अच्छी से अच्छी दावत भी है
भले भी है बुरे भी है
पूरे भी है अधूरे भी है
फ़ूहड़ भी है सलीके भी है
बेतरतीब व करीने भी है
भोजन भी है पानी भी है
बुढ़ापा और जवानी भी है
बरगद भी है आंगन भी है
धागा भी है और कंगन भी है
किताब बहुत असरदार है आओ चलें पाठ करें
गंगा भी है यमुना भी है
बसंती फिज़ा खुशनुमा भी है
टीका भी है कुमकुम भी है
दरिया भी व जमजम भी है
तहज़ीब की सागर बहती भी है
दुश्वारियों की गलियां रहती भी है
रहीम के मुकुट में राम भी सोते
कृषक भी खेतों में सोना ही बोते
बाग़ बगीचे झुरमुट रहते
प्रभात तले सत्संग में रहते
किताब सदा खबरदार है आओ चलें पाठ करें
नमाज़ भी है व पूजा भी है
अकेले कहीं, कोई दूजा भी है
कबीर मिलेंगे रहीम भी मिलेंगे
सूर भी दिखेंगे तुलसी भी खिलेंगे
रामायण भी है क़ुरान भी है
पूजा की असली दुकान भी है
बाईबल भी है गीता भी है
खदीजा भी है और सीता भी है
निराला भी है व गौतम भी है
किताबें बहुत सारी उत्तम भी है
किताब ख़ुद रचनाकार है आओ चलें पाठ करें
~ इमरान संभल शाही