चलो हंसते-हंसते बुरा वक्त बिताते हैं

चलो हंसते-हंसते बुरा वक्त बिताते हैं

कलमकार विपुल मिश्रा बुरा वक्त हंसते हंसते बिताने की बात अपनी कविता में लिखते हैं। बुरे वक्त में धैर्य की जरुरत होती है और हंसते हुए हम इसे हरा सकते हैं।

चलो हंसते-हंसते बुरा वक्त बिताते हैं
खुद भी हंसते हैं दूसरों को भी हंसाते हैं,
चलो हंसते-हंसते बुरा वक्त बिताते हैं।

किसी को समझाते हैं किसी को हिम्मत दिलाते हैं,
ना रोते हैं ना दूसरों को रुलाते हैं,
चलो हंसते-हंसते बुरा वक्त बिताते हैं।

किसी को भरोसा दिलाते हैं किसी का भरोसा बन जाते हैं,
सभी का दुख सुनते और सुनाते हैं,
चलो हंसते-हंसते बुरा वक्त बिताते हैं।

किसी को भेंट देते हैं किसी से भेंट पाते हैं,
कहीं फुसफुसाहट तो कहीं ठहाका लगाते हैं,
चलो हंसते-हंसते बुरा वक्त बिताते हैं।

किसी से तकलीफ छिनते हैं किसी की खुशियां सजाते हैं,
कभी साथी और कभी हमदर्द बन जाते हैं,
चलो हंसते-हंसते बुरा वक्त बिताते हैं।

सबके साथ रहना और सबकी बात सुनना,
कुछ उनकी सुनते हैं कुछ अपनी सुनाते हैं,
चलो हंसते-हंसते बुरा वक्त बिताते हैं।

आज मुसीबत के बादल चारों ओर छा गए हैं,
हम राहत की बारिश करवाते हैं,
चलो हंसते-हंसते बुरा वक्त बिताते हैं।

~ विपुल मिश्रा

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