मनुष्यों का व्यवहार भी अजीब है, कभी सुलझी हुई बातें करतें हैं तो कभी उनकों ही समझ पाना मुश्किल होता है। कलमकार निहारिका चौधरी की इस कविता में हमारे स्वभाव के बारें में कुछ बातें बताई गईं हैं।
चलो कुछ लिखते हैं
हर जगह पानी मिलता है,
फिर भी लोग पैसों से पानी ख़रीद कर पीते हैं,
कभी कभी हम कितने मजबूर से लगते हैं,चलो कुछ लिखते हैं!
सब्ज़ी मंडी से सब्ज़ी खरीदना हो या कपड़ों की दुकान से कपडे खरीदना,
कभी कभी लोग पॉली बैग के लिए दुकानदार से झगड़ा करने लगते हैं,
और मॉल में चुप चाप कैरी बैग के लिए खुद पैसे देकर आते हैं,
इन सब में हम सब कितने मजबूर से लगते हैं,चलो कुछ लिखते हैं!
पॉपकॉर्न खरीदते वक्त दस बीस रुपए में कम पॉपकॉर्न मिलने पर
लोग पॉपकॉर्न वाले से झगड़ा करने लगते हैं,
और वहीं सिनेमा हॉल में अलग से पॉपकॉर्न मगवाकर,
वो कम हो या ज्यादा फ़िल्म देखते देखते लोग बड़े चाओं से पॉपकॉर्न खाते हैं,
इन सब में कभी कभी हम कितना खो से जाते हैं,चलो कुछ लिखते हैं!
घर पर जो बचपन से मां पिता जी और परिवार का प्यार मिल रहा,
उसके बाद भी लोग बाहर किसी और का सहारा तकते हैं,
जो चला गया वो अपना था ही नहीं उसके बाद भी
कुछ लोग ऐसे इंसान के लिए अपनी ज़िन्दगी बर्बाद करते हैं,
और बाद में ख़ुद को कितना मजबूत सा पाते हैं,चलो कुछ लिखते हैं!
पहले लोग कितने खुश खुश से होते थे,
ख़ुद के साथ साथ परिवार को भी समय देते थे,
आज कल तो हम सब बस व्यस्त ही रहते हैं,
इस चका चौंद भरी जिंदगी में सब बिजी बिजी से लगते हैं।चलो कुछ लिखते हैं…
~ निहारिका चौधरी
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