जिंदगी एक सफ़र है- शुभम सिंह की यह कविता जीवन के उतार चढ़ाव और गति को संबोधित करती है। हमारे जीवन में भी अनेक पड़ाव आते हैं, कुछ ठहराव सा होता है लेकिन फिर से वह गतिमान हो जाता है।
जिंदगी एक सफ़र है
रेलगाड़ी की सफ़र जैसी
जिसमें मिल जाते हैं
कुछ अच्छे लोग।
बैठे पास वाली बर्थ पर
मिल जाता है हमारा मन
और छनने लगती हैं
बातों की जलेबियाँ।
कटने लगता है सफ़र
कुछ कहकहे कुछ ठहाकों के साथ।
चाय-चाय, बादाम-बादाम की कर्कस आवाज
देती है थोड़ी तकलीफ़।
फिर भी हम बढ़ रहे होते हैं
मंजिल की तरफ मस्ती में।
पाँव के नीचे से बहती जमीं निहारते
पेड़-पौधे,नदियों को अलविदा कहते
हम जी रहे होते हैं सफ़र को।
कभी कभी उतर जाता है
हमारा साथी यात्री,
हमसे पहले ही किसी स्टेशन पर।
मगर हम चाहते हैं
वो भी चले मेरे साथ
मेरे मंजिल तक।
जिंदगी एक सफ़र है।~ शुभम सिंह