जिंदगी सड़को पर बेहाल पड़ी है।
जो बिना सुख सुविधा के खुश रहा करते थे
आज सड़को पर इन्तहां दे रही हैं।
जो भड़ता सभी का पेट यहां-वहां
पर, आज तड़पते गां जा रही हैं
कुछ सपनों की चाहत में,
अपनो को छोड़ आसमा उड़ी थी
आज सड़को पे बेहाल पड़ी हैं।
देखने हो अग़र जो अंधेरे
आओ देखो सड़को पे दर्द का
सैलाब बयां कर रही है
जिंदगी सड़को पर बेहाल चल रही हैं।
जिंदगी सड़को पर चुनौती बन बैठी है
अब तो आत्मनिर्भरता शब्द भी
अपने आप में लज्जित कर रही है
आज सड़को पे बेहाल खड़ी हैं।
देश के निर्माण में बहुमूल्य भूमिका
निभाता जो मजदूर अपने सितम की
कहानी सुना रही है
आज सड़को पर बेहाल चल रही हैं।
श्रम, संयम भूख प्यास बेरोजगारी
से लाचार डिजिटल हिंदुस्ता कह रही हैं।
कर्मठ बाजू “मजदूर” से आज “मजबूर”
चली जा रही है।
लम्बा सफ़र अन्तहीन डगर शव के
साथ, तो कोई कन्टेनर में तो कोई
सीमेंट के मिक्सर में दर्द के साथ
दर्द के साथ शैलाब पी रही है
याद रहेगा ये पल भी सबको कि
एक जिंदगी सड़क पर बेहाल चली थी।
~ पुजा कुमारी साह