चाहत

चाहत

चाहत यूँ ही समाप्त नहीं होती है। कलमकार सविता मिश्रा ने चाहत की कुछ पंक्तियाँ इस कविता में संजोकर प्रस्तुत की हैं।

ये हवा में महकती
भीनी भीनी खुशबू
तेरे वजूद का
आभास दे जाती है।
तेरे ख्याल
इस स्याह ठंडी रात में
गुनगुना सी तपिश दे जाते हैं।
क्यू गुमसुम से हम
हर मंजर में तुम्हे
खोजते रहते हैं।
बरसों गुजर गये
उन लम्हों से दूर आये हुए
आज भी उन्ही दायरों में
कैद हुए बैठे हैं
न कोई आहट
न आमंत्रण
फिर ये कैसी चाहत

~ सविता मिश्रा

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