रहते हम सब घर में ही
चाहे दिन हो या रात,
सारा कुछ है बंद पड़ा
हो गई पुरानी बात।
पहले तो संतोष था
बीत जाएँगे दिन इक्कीस,
थोड़ा मन तब घबड़ाया
जब प्लस हो गए और उन्नीस।
थोड़ी सी परेशानी है
पर ठीक ठाक है हाल,
लेकिन चिंता की बात ये
अब बढ़ गए हैं बाल।
शायद सब कोई मानेंगे
है बड़ी समस्या आई,
जब भी आईना देखते हैं
याद आते हैं नाई।
दिनचर्या है चल रही
निपट रहे जरूरी काज,
लेकिन बढ़े हुए जो बाल हैं
इसका क्या है ईलाज?
~ रमाकान्त शरण