लॉकडाउन को निभाया है

लॉकडाउन को निभाया है

लॉकडाउन को हमने कुछ इस तरह निभाया है
ट्रेन की रफ्तार सी भाग रही थी ज़िन्दगी
वक़्त ने उस पर पहरा बिठाया हैं
अब वक्त हमने आत्मचिंतन के लिए पाया हैं
सुबह उगते हुए सूरज के सामने अपना शीश झुकाया हैं
बाहें फैलाकर किया प्रकृति का आलिंगन
नन्ही चिड़ियों के लिए दाना बिछाया हैं
संगीत और साहित्य सृजन के लिए समय पाया हैं
बड़े दिन बाद गीत हमने गुनगुनाया हैं
कभी बच्चन जी की मधुशाला,
कभी दिनकर की कविता का रसपान किया हमने
बड़ी मुद्दत से बात नही हुई थी
जिन दोस्तो से उनसे बतियाने का समय पाया हैं
जल्दी जल्दी मैं खाने वाले निवाले जैसी थी ज़िन्दगी
अब ज़िन्दगी का असली स्वाद पाया हैं
अपने लिए और अपनों के बीच सारा वक़्त बिताया हैं
संकट की इस घड़ी मैं प्रभु के आगे शीश झुकाया हैं
खत्म हो कोरोना काल
स्वस्थ रहें सब यही संकल्प हमने दोहराया हैं।

~ अनुभूति मिश्रा शर्मा

Leave a Reply


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.