तनहाइयाँ भी कट जाती हैं, यादों के आँगन में
फिर भी जी नहीं लगता, दिल के विरानेपन में।
हो गया है मेरा हमदम, मेरा ही यह अश्क़
साथ देता है जो, ज़िंदगी के सूनेपन में।
चाहा था बहुत, चाहते भी हैं, भूलाना तुमको हम
क्या करें मन भी साथ नहीं देता, दिल के दीवानेपन में।
फिर याद आता है तेरा चलना, मुस्कुराना और बहाने बनाना
अब भी याद है तेरा भीगना, और भिगोना बरसते सावन में।
यह सोचकर कि तरस न खाएं, लोग मेरी हालत पर,
गिरते हुए अश्क़ों को पोछ लेते हैं, गम के दामन में।