अकेलापन क्या होता है, इससे कैसे गुजरना होता है? यह तन्हाई का शिकार हुआ व्यक्ति ही बता सकता है। कलमकार राजेश शर्मा पुरोहित जी ने इसे समझाने के लिए एक कविता प्रस्तुत की है।
जुदाई का दुख तुम क्या जानो
तन्हाई में जीना क्या होता है
यादों के सहारे कटती रातें
दिन सारा कैसे गुजर जाता है
भीड़ में भी तन्हा तन्हा सा
खोया खोया रहता है
बेचैनी रहती है हर पल
दर्द दुगुना हो जाता है
तन्हाई के आलम में बस
ख्वाबों में ताने बाने चलते हैं
कभी बरसात की रातें
कभी सर्द सिहरन होती
कभी गरम लू के थपेड़े सहते
मुश्किल में जिन्दगी गुजरती है
न खाने पीने का सलीका
न तन की सुध रहती है
प्रेमी पागल सा हो जाता
अतीत के पन्नो में सिमट जाता
कभी झर झर आंसू बहते
कभी हँसता खिलखिलाता
तन्हाई में ऐसा ही हाल होता~ डॉ. राजेश कुमार शर्मा “पुरोहित”
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