भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव में भक्तिमय रचनाएँ हिन्दी कलमकारों ने लिखी हैं। आइए इन रचनाओं के माध्यम से प्रभु श्रीकृष्ण का वंदन करें।
भक्त और भगवान
करे मेरी बड़ाई, मैं उसकी बड़ाई
पता नही हुई किसकी बड़ाई,
जय-जय होवे राम रघुराई
सुंदर-सुंदर मीठी वाणी,
मन भावे चतुराई प्यारी मीठी बोली,
प्रभु मन ललचाई करे जग की रखवाली,
सबकी लाज बचाई देवे कोठी अंधकार में,
जगमग-जगमग रौशनी कराई
तिनका-तिनका गिनकर, तीन मंजिला बनवाई
करे मेरी बड़ाई, मैं उसकी बड़ाई
पता नही हुई किसकी बड़ाई,
जय-जय होवे राम रघुराई
बाल मन की लीला, गोकुल,
मथुरा, बृंदावन और अयोध्या में छाई
सोचा प्यारा मान जाऐ, अनामिका पर पर्वत उठाई
अभिमानी मन दिखा, जग को शक्ति दिखलाई
सबके मुख नाम पर प्रभु, गूंजे तेरी ही सहनाई
करे मेरी बड़ाई, मैं उसकी बड़ाई
पता नही हुई किसकी बड़ाई,
जय-जय होवे राम रघुराई।
श्री कृष्ण बाल लीला
बनमाली गिरिधारी तू रासबिहारी,
मेरे चितवन के उपसर्ग रहे,
मोहिनी मूरत बाँसुरी वादक ,
अलौकिक रूप के आभा लिए।
बहक बहक के जब नयन मिले,
नयनन को अद्भुत सुख खिले,
करुणानिधि बन आते आंगन में,
सुखदाई अंगराई चहुओर दिखे।
छलिया रूप धर बृंदा बन में ,
मनमोहक बाँसुरी धुन सुनाए,
राधा संग ब्रज के गोपियां सब,
ताता थैया ताता थैया नाच नचावैं।
ब्रज के सब नर नारी गोकुल में,
मोहन संग हर्षोल्लास मानावे,
सब ग्वाल बाल लईकन गोपाल,
घर घर मे सब माखन चुरावे।
कुछ खाये, कुछ गिराए माखन,
लोटन के माँ हंसकर सुनावे।
श्याम के कारनामा शिकवा,
माँ यशोदा को बहुत तड़पावे।
कृष्णा दर्शन को राधा व्याकुल,
सुबह शाम दिन रात निहारें।
कदम पेड़ यमुना तीरे राधा को,
बाँसुरी वादन नित्य श्याम सुनावे।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी
जब थी रात काली अंधियारी
तब जन्मे थे कृष्ण मुरारी।
खुली बेड़ियां मात-पिता की
जब जन्मे थे नर अवतारी।
वसुदेव देवकी धन्य हो गए
जीवन में थी खुशियां आई।
पापी कंस का इस धरती से
अंत करन की बारी आई।
कारागार के खुल गए ताले
सो गए थे सारे दरबारी।
कान्हा ने गोकुल जाने की
कर ली थी पूरी तैयारी।
छायी चारों ओर घटाएं
मूसलाधार हुई बरसाते।
यमुना का जल धीरे-धीरे
अपना कद थे सतत बढ़ाते।
वसुदेव कान्हा को सिर पे थामे
बढ़ते जल में हिम्मत ना हारे।
शेषनाग थे बन गए छाता
बन कर के उनके रखवारे।
पहुंचे गोकुल में जब कान्हा
सबको निद्रा में थे पाए।
लिटा कृष्ण को यशोदा के संग
उठा बेटी उनकी ले आए।
जय श्री कृष्णा
ये जग तुझमे है समाहित,
तुम हो जग के कण-कण में,
हर जन तब बन जाये कान्हा,
आ जाओ जब हर मन में,
इस धरा पर आओ गिरधारी
अपनी छटा बिखेर दो,
तुमसे ही आसक्ति हर पल
समाये जो तुम पल पल में।।
बिना तुम्हारे अधूरी राधा
न पूरी तुम बिन यशोदा मैया,
बिना तुम्हारे ना हैं सुदामा
ना बिना तुम्हारे कोई गैया।।
इस धरा पर आओ गिरधारी
आकार सबको पूरित कर दो
जीवन नैया फंसी है तुम बिन,
पार लगा दो बन के खेवैया।।
माधव फिर से तुम आ जाओ
नही पूछता कोई पितामह
आज सुयोधन नृप बन बैठा
जनता भी धृतराष्ट्र हुई है
इसी के दम तो कौरव ऐंठा
लोकतंत्र का चीर हरण है
किसी विध तो तुम लाज बचाओ
माधव फिर से तुम आ जाओ।
लुटता आर्यावर्त तुम्हारा
जरासंध फिर से चढ़ आया
नाम भले हैं तेरा लेते
अंदरखाने सब बिचवाया
सुमति दो भक्तों को अपने
वृंदावन की आग बुझाओ
माधव फिर से तुम आ जाओ।
अतिवृष्टि में बहता भारत
अनावृष्टि में सूख रहा है
कोई माता की जय कहता
उसी का आंचल फूंक रहा है
गिद्ध उड़े मधुवन के उपर
अब तो सुदर्शन चक्र चलाओ
माधव फिर से तुम आ जाओ।
पावन जन्माष्टमी
मुरलीधर की शरण में तो ये जग सारा है।
आया जन्माष्टमी पावन त्योहार प्यारा है।।
मोहन की मुरली का य़ह दीवाना संसार है।
नटवर की महिमा तो जहां में अपरंपार है।।
मुरली बजाए कान्हा छेड़े मधुरिम तान है।
गोपियों के मन को भी भाए प्रेम गान है।।
प्यार का प्रतीक और मित्रता का मान है।
गोपों की प्रेम धुन और अर्जुन का ज्ञान है।।
सुदामा की दीनता का सच्चरित्र प्रमाण है।
बलदाऊ का बल कुबजा का कल्याण है।।
असुरों के विनाशक, प्रजा के रखवाले है।
गोवर्धन धारी, गिरधारी, श्याम मतवाले है।।
तुझे पाऊं कहाँ गिरधर
बिरज की गलियों में ढूँढू।
द्वारिका महलों को जाऊं।।
बाल सखाओं से पूछूँ।
यमुना तीरे जाऊं।।
अब जाऊं कहाँ गिरधर।
तुझे पाऊं कहाँ गिरधर।।
गइयों की अँखियन में झाँकू।
गोवर्धन शिखा निहारूं।।
मीरा के तान भी सुनु।
राधा प्रेम समझ न पाऊं।।
अब जाऊं कहाँ गिरधर।
तुझे पाऊं कहाँ गिरधर।।
जग के पालनहारे।
हम तेरे सहारे ।।
ओ मुरलीवाले।
मेरे दुःख तू हर ले।।
ओ देवकीनंदन।
करुँ मैं तेरा वंदन।।
तू आजा मेरे गिरधर।
तुझे देखूँ मेरे गिरधर।।
ह्रदय से तान लगाऊं।
तेरा ध्यान लगाऊं।।
जग को बिसराऊँ।
तेरा रूप निहारु।।
तू आता यहीं गिरधर।
तुझे पाऊं यहीं गिरधर।।
हे कान्हा! अरज स्वीकारो
हे मुरली मनोहर कृष्ण कन्हैया,
फिर से धरा पर रूप धरो,
दिखाकर हमको सत्य का पथ,
हे कान्हा! भक्तों की नैया पार करो॥
बजाकर बांसुरी की मधुर धुन
फिर से सबको आनंदित करो,
दिखाकर अपनी सांवरी सूरत,
हे कान्हा! अब मन मोहित करो॥
छोड़ दिया है मोह त्याग कर,
फिर गइयों का पालनहार बनो,
दिखाकर अपनी दिव्य रूप,
हे कान्हा! राक्षसो का संहार करो॥
किया भक्तों ने बहुत प्रतीक्षा,
फिर द्वापरयुग जैसा सृष्टि रचो,
दिखाकर राधा-कृष्ण रूप हमे,
हे कान्हा! अपने प्यार से तृप्ति करो॥
इस जन्मोत्सव पर मुरलीधर,
फिर हम पर इतना उपकार करो,
दिखाकर मीरा के प्रति जैसी भक्ती,
हे कान्हा! अरज हमारी स्वीकार करो॥
हे कान्हा! अरज हमारी स्वीकार करो॥
कन्हैया
उसके प्रेम का रंग ही हैं ऐसा,
जहान मेँ कोई ना उसके जैसा हाय,
देवकी ने जन्म दिया उसे,
लाल वो यशोदा मैय्या का कहलाये.
लेते ही जन्म किया बड़ा चमत्कार,
अपने ही पिता को कर वशीभूत,
लें गया गोकुल नंदराजा के यहाँ,
करवा डी उनसे नदिया भीं पार..
बचपन मेँ ही किया बड़े बड़े
राक्षसों का संहार,
हर मुश्किल से बचाया सबको,
बन गए तारणहार..
गोपियों के प्रेम मेँ जाने,
रचाई कितनी लीला,
हर कोई खींचा चला आता,
रूप ऐसा अलबेला..
राधा के संग रास रचाये,
सबका ये कन्हैया कहलाये,
प्रेम रंग जगत को सिखाये,
मुरली की धुन पर सबको नचाये.
मैं कान्हा, मैं मोहन
मैं नटखट मैं गोपाला.!
मैं कान्हा मैं माखनचोर.!!
मैं देवकी पुत्र मैं यशोदा नंदन.!
मैं वासुदेव मैं नंदकिशोर.!!
सूरत मेरी भोली भाली.!
चंचल चितवन मीठी वाणी ठोर.!!
मैं गिरधारी मैं बनवारी.!
मैं मोहन कहते मुझको चितचोर.!!
पांव खड़ग देह पीताम्बर पहनूँ.!
माथ मुकुट मेरे सोभे पंख मोर..!!
मुरली धर भी है नाम मेरा.!
बजाऊँ मुरली मैं शाम और भोर.!!
रास रचाऊँ संग गोपियन के मैं.!
राधा रहती हरदम पकड़े मेरी डोर.!!
बसता राधा के कण कण में ही मैं.!
मीरा रखती मुझको बिठा सिरमौर.!!
एक रहती हरदम संग संग मेरे.!
एक रहती जपती नाम मेरा हर छोर.!!
देख एक को नेत्र सजल हो जाते.!
होता देख दूजे को मन भाव विभोर.!!
मैं माधव मैं मधुसूदन.!
लक्ष्मीकांत मैं श्यामसुंदर.!!.
मैं द्वारकाधीश मैं रघुनंदन.!
मैं ज्ञानेश्वर मैं सर्वेश्वर.!!
यत्र तत्र सर्वत्र बसा मैं
न ठिकाना न कोई ठौर
मैं हीं विष्णु मैं हीं विश्वरूपा
मैं हीं वैकुंठ कर लो गौर.!!
मैं कान्हा मैं माखनचोर.!
मैं मोहन, मैं चितचोर.!!
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SWARACHIT1475B | श्री कृष्ण बाल लीला |
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SWARACHIT1475E | माधव फिर से तुम आ जाओ |
SWARACHIT1475F | पावन जन्माष्टमी |
SWARACHIT1475G | तुझे पाऊं कहाँ गिरधर |
SWARACHIT1475H | हे कान्हा! अरज स्वीकारो |
SWARACHIT1475I | कन्हैया |
SWARACHIT1475J | मैं कान्हा, मैं मोहन |