है अद्भुत तेरी लीला प्यारी,
जनता सुख, त्यागे सुकुमारी,
सीता बिछड़े न राजधर्म,
प्रभु शरण है दुनिया सारी,
वन को जाय न अकुलानी,
महल बिसराय हे कृपानिधानी,
वन का राज सहज स्वीकारा,
मुख पर सूरज तेज़ स्व-अभिमानी,
विचरण कर वन असुर गिरायो,
हर सुर के तुम सुर कहलायो,
पाप नाश तुम ईश्वरदानी,
अतुल मुख कर रहा बखानी,
लंकापति को सबक सिखायो,
बिछड़ी सीता से मिल पायो,
युद्ध रक्षा करे रघुबीरा,
प्राण रचत यह विचल शरीरा,
अंत समय में ज्ञान बढ़ायो,
रावण के मुख वचन सुहायो,
विश्व विजेता तुम कहलायो,
हे प्रजा के पालनहारी,
बने कृपा हे अयोध्या स्वामी।
~ गौरव शुक्ला’अतुल’