नमो शिव ~ सविता मिश्रा
अनादि तू अनंत तू
सत्य तू ओमकार तू
धर्म तू ग्यान तू
साधू संतो का मान तू
हाथ में त्रिशूल धर
जटा में गंगधारी
मस्तक में सोहे चन्द्रमा
जय हो त्रिपुरारी
तन पे लपेटे भस्म
गले में सर्पमाल है
कालों के भी काल है
शिव शंकर महाकाल है ।
बस बेल पत्र और एक लोटा जल
खुश हो जाते निमिष मात्र में
देते मनचाहा वरदान
आशुतोष शिव शंकर जी
पिया गरल जब सृष्टि हिताय
नीलकंठ कहलाये
इनकी भक्ति करके पापी भी
भव सागर तर जाये
हे आदि देव कालजयी अभ्यंकर
पापीयो के संहारक महा भयंकर
मस्तक का नेत्र जो खुल जाये
त्रिशूल का हाहाकार महा प्रलयंकार।
हे नाग नाथ ~ दिनेश सिंह सेंगर
हे नाग नाथ,
हे सांप नाथ
तुम जैसा ना देखा पाया।
तुम हो असभ्य,
तुम नहीं सभ्य
वस्त्र न घर तुमने बनवाया।।
रहते हैं भद्रजन
शहरों में
तुमने जंगल को अपनाया।
पर एक समानता
देखी जब
मेरेमन में विस्मय छाया।।
फुस्कार,
जहर और
यह डसना
जो भद्रजनों की है काया।
यह मुझे बताओ
नाग नाथ
तुमने किससे सीखा पाया।।
तुमने किससे सीखा पाया।।
शिव ~ अनुभव मिश्रा
शिव अंतर मन की शक्ति है
शिव पूजा है, शिव भक्ति है
शिव से सृष्टि में प्रकाश है
शिव पतझड़ में मधुमास है
शिव ही तो जीवन दर्शक है
शिव सबका पथ प्रदर्शक है
शिव ही जीवन का सार है
शिव से ही तो ये संसार है
शिव ही कष्ट निकन्दन है
शिव के चरणों में वंदन है
नमः शिवाय ~ अनुराग मिश्रा अनिल
हे, त्रिकालदर्शी त्रिशूलधारी नीलकंठ महादेव।
त्रिनेत्रधारी त्रिपुरारि नागेंद्रधारी नमः शिवाय।।
मैं शिव हूँ,
मैं अखंड हूँ
अनंत हूँ,
मैं अविनाशी हूँ।
मैं शिव हूँ,
काशी का वासी हूँ।
शिव ~ प्रीति शर्मा “असीम”
शिव जीवन है।
शिव मरण है।
शिव सत्य है।
शिव सनातन है।
शिव ओ३म है।
शिव वेद है।
शिव विधान है।
शिव गीत है।
शिव नाद है।
शिव धरा है।
शिव व्योम है।
शिव नदियां है।
शिव महासागर है।
शिव शिला है।
शिव शिखर है।
शिव रस है।
शिव स्वाद है।
शिव वन है।
शिव मन है।
शिव ज्ञान है।
शिव विज्ञान है।
शिव शक्ति है।
शिव भाक्ति है।
शिव प्रश्न है।
शिव उत्तर है।
शिव साकार है।
शिव निराकार है।
महादेव ~ श्याम सुन्दर श्रीवास्तव ‘कोमल’
हे प्रभु अनंत तुम दयावंत हो, शुभ स्वरूप जग हितकारी।
हे आदि देव हे महादेव, भक्तों के भोला भण्डारी।
महादेव परमेश्वर तुमने, जग का है कल्याण किया।
इस जग के ही लिये आपने, हँस कर विष का पान किया।
हे नील कंठ हे शूल पाणि, हे कैलाशी प्रभु त्रिपुरारी।।
डमर-डमर डम डमरू बाजे,जटा विराजी हैं गंगा जी।
पावन नाम स्मरण दर्शन, मन हो जाये यह चंगा जी।
अर्ध चन्द्रमा भाल विराजे, शोभा है अद्भुत शुभ न्यारी।।
भूत-प्रेत, गण, नंदी जन सब, सेवा करहैं सुख पाते।
जल्दी ही ही प्रसन्न हो जाते, आशुतोष प्रभु कहलाते।
हे शिवशंकर! रुद्र भयंकर, असद अमंगल प्रलयंकारी।
हे प्रभु अनंत हे दयावंत प्रभु, शुभ स्वरूप जग हित कारी।
भक्तों के महादेव ~ संगीता पात्रा
देव है वो देवों के
वो भक्तों के महादेव है,
अनन्त है वो अविनाशी है
वो काल है महाकाल है,
गण है वो गौर के
वो शिव है वो ही शक्ति है,
कैलाश के वो स्वामी है
भुजंगभूषण गंगाधारी है,
नंदी की वो सवारी है
त्रिशूल और डमरू धारी है,
नीलकण्ठ है वो विश्वनाथ है
वो ही शिव शंभू सबके नाथ है,
राम के वो ईश्वर है
वो ही अर्धनारीश्वर है,
निर्गुण है वो निराकार है
वो ही तो जीवन के आधार है,
सर्वस्व है वो सर्वव्यापी
आदि है वो ही अंत है,
चारों ओर जिसका यशगान है
वो शिव है वो महान है।