इश्क है तुमसे

इश्क है तुमसे

इश्क़ के इज़हार में भी डर लगता है। अक्सर आप अपनी बातें उससे कहने में झिझकते हैं। कलमकार कुमार किशन कीर्ति ने इस दुविधा को अपनी कविता में दर्शाया है।

कैसे कह दूँ मैं तुमसे
मैं इश्क है तुम्ही से
डरता हूँ मैं कभी अपनी हालातों से
इस मुक्कमल जहाँ से, तो
कभी खुदा की खुदाई से
कैसे कह दूँ मैं तुमसे?
मुझे इश्क है तुम्ही से
कही तुम इंकार ना कर दो
इश्क की कलियों को
तुम कही ना मसल दो
तुम जब भी सामने आती हो
यह दिल कुछ कहना चाहता है
पर, ये लब्ज अल्फाज
नहीं कह पाते हैं
दिल की बातें, जुबां
पर नहीं आते हैं
फिर भी, कैसे कह दूँ मैं तुमसे?
मुझे इश्क है तुम्ही से
पर, ना जाने क्यों मुझे यह लगता है
तुम मुझसे कुछ कहना चाहती हो
इजहार-ए-मोहब्बत
मुझसे बताना चाहती हो
तो क्यों? यह फासला है हम दोनों के बीच
आओ इसे मिटा दे
एक दूसरे को गले लगाकर

~ कुमार किशन कीर्ति

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