नव वर्ष में प्रीत का पैग़ाम

हिंदू नव वर्ष में प्रीत का देना चाहता पैगाम,
तोड़ने का न, वरन जोड़ने का करूँगा काम।
अपने ईमान से न कभी भी मैं लड़खड़ाऊंगा,
नव वर्ष में अच्छा करूँगा लोग लें मेरा नाम।।

नव वर्ष में इंसानियत ही बन जाए मेरा धर्म,
दूजे की पीड़ा देख कर जान लूँ उसका मर्म।
नव वर्ष में साहित्य में सुंदर सृजन का प्रयास,
राष्ट्र और समाज के हित में मैं करूँ सदकर्म।।

अन्याय व शोषण के खिलाफ़ हो मेरी आवाज,
नव वर्ष में बस! अच्छाइयों से हो मेरा आगाज़।
सभी के जीवन में प्रगति व ख़ुशियाँ कायम हो,
हमारे किसी आचरण से कोई भी न हो नाराज़।।

नव वर्ष में हर बच्चे के चेहरे पर नई मुस्कान हो,
परिंदों को भी उड़ने के लिए खुला आसमान हो।
नव वर्ष में हम सब के लिए कोई ऐसी नीति बने,
न कोई अगड़ा, न पिछड़ा, सब एक समान हों।।

जातीयता और मज़हब के नाम पर न हो लड़ाई,
नव वर्ष में कानून के पालन की ख़ूब हो कड़ाई।
शासन सत्ता में बैठे लोग जनता के बारे में सोचे,
घोटाले में फंसे नेता जी, ख़ुद की न करें बड़ाई।।

गरीबों और छोटे लोगों की भी बने इक पहचान,
नव वर्ष में हम सद्कर्मों से बने एक नेक इंसान।
सभी फूले फले, अपनों से हम सीखें करना प्यार,
प्रसन्न हो गाँव, कस्बे, किसान, खेत व खलिहान।।

~ लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

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