इन हसीं वादियों में
इन चहकते पंछियों के बीच
इस ढलती शाम में
मेरी प्रियतमा, चलो एक प्रेमगीत गाए
उस प्रेमगीत में
केवल हमारी ही प्रेमगाथा हो
कर्णप्रिय जो लगे
उसमे वैसा मधुर राग हो
हमारी प्रेमगाथा सुनकर
ये प्रकृति भी सिंगार कर ले
तो कही दूर बैठी कोयल
अपनी मधुर वाणी से बोलने लगे
मेरी प्रियतमा, यह प्रेमगीत मैं भी
इस तरह से नहीं गा पाता
जब तक तुम ना आती
मैं भी कहाँ गुनगुना पाता?
वह प्रेमगीत कैसा हो?
जैसे दो प्रेमियों का मिलन हो
विरह, मिलन के साथ ही
राग-संगीत का अनोखा संगम हो
सच कहूँ, मेरी प्रियतमा
मन यही चाहता है
तोड़कर सारी बंधनो को
तुझमे ही समा जाने को ये दिल चाहता है
या, कभी-कभी सोचता हूँ
इसी तरह हमदोनों इस
ढ़लती हुई शाम में अपनी
प्रेमगीत गुनगुनाए, और इस
जहाँ में अपनी प्रेम गीत से
सबके मन मे प्रेम निधि फैलाए
इन हसीं वादियों में
इन चहकते पंछियों के बीच
इस ढ़लती हुई शहम में
मेरी प्रियतमा चलो एक प्रेमगीत गाए
~ कुमार किशन कीर्ति