सूर्य रश्मियों की तरह रहे वह प्रकाशवान,
राहुल सांकृत्यायन हुए एक लेखक महान।
‘महापंडित’ के अलंकार से हुए सुशोभित,
साहित्य में है उनका एक विशिष्ट स्थान।।
महान घुमक्कड़ व प्रकांड पंडित रहे राहुल,
साहित्य में न जाने कितने नव प्रतिमान गढ़े।
मात पिता की जब हो गई असामयिक मृत्यु,
बचपन बीता ननिहाल में, जहाँ वो पले बढ़े।।
आजमगढ़ के कनैला में नौ अप्रैल को जन्म,
भारतवर्ष और विदेशों में होता है यशगान।
इतिहासविद, पुरातत्ववेत्ता व त्रिपिटकाचार्य,
पद्मभूषण व साहित्य अकादमी पाए सम्मान।।
हिंदी के साथ छत्तीस भाषा का उनको ज्ञान,
कहानी उपन्यास राजनीति दर्शन के विद्वान।
‘वोल्गा से गंगा तक’ उनकी थी अनुपम कृति,
जिसका आज भी होता है वैश्विक गुणगान।।
भारत की सबसे प्राचीन पाली व संस्कृत को,
पूरी दुनिया में प्रतिष्ठित कर के मान दिलाया।
मार्क्सवाद व बौद्ध मत से हुए ख़ूब प्रभावित,
केदार से हुए राहुल और बौद्ध धर्म अपनाया।।
गाँव और किसान बहुत ही प्रिय थे राहुल को,
कई किसान आंदोलन में बढ़ चढ़ भाग लिए।
स्वतंत्रता की लड़ाई में गाँधी जी के साथ रह,
‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में राहुल जेल भी गए।।
~ लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
राहुल सांकृत्यायन के जन्मदिवस (9 अप्रैल, 1893) पर विशेष रचना