हरा भरा हो वसुधा का घर द्वार

हरा भरा हो वसुधा का घर द्वार

आओ जिन्दगी बदल डालें अपनी भी सरकार
प्रकृति के आगे हम सब है लाचार
किसी को ताजमहल तो किसी को कर्फ़्यू पास मिला उपहार
हम भी आना चाहते हैं तेरे आगोश में अब हमें तो मत नकार॥
लगने लगी है अन्न जल के सिवाय ये बाकि दिखावटी दुनिया बेकार
अन्न मिले कपड़ा मिले तन को समृद्ध रहे सभी परिवार॥
अपनी ख़्वाहिशें है सबकी प्रकृति को उजाड़कर बसा रहे हैं संसार
सभी तुम्हारे आगे बने फिरते हैं नये नये कलाकार॥
करो तैयारी लाओ नवाचार
खुद की तबाही का तो मत बनाओ औज़ार॥
कोई परमाणु तो बना रहा है हथियार
किस काम का जब प्रकृति ही नहीं होगी स्वच्छ तुम्हारा व्यपार॥
बन्द कर दो युं धरा को रूलाना
विकास का खो गया कहीं पैमाना॥
देख ले वक्त कह रहे बदल गया जमाना
नादान हैं झुठ फरेब की दुनिया सारी
कौन आना चाहेगा लालच में दूसरी बारी॥
करा लो प्रकृति का भी तुम हार श्रृंगार
अपनी सोने की कुटिया से थोड़ा सोना तो उतार॥
जागना होगा अब तो मानुष की सरकार
सूनी तो होगी वसुंधरा की सब ने ललकार॥
करना भगवन् सब पर एक उपकार
समझ जायेंगे हम लालची माफ़ कर देना इस बार॥
मत हो हताशा में गुम, बेखबर नादान कलम के कलाकार
कश्ती तेरी भी जायेगी समंदर के उस पार॥
सुन रहा है “खेम” भी कहीं दर्द की पुकार
करो प्रकृति का कोई तो उपचार॥
हरा भरा हो वसुधा का घर द्वार
मन से हटा दे अपनी अब तो तलवार॥
कैसा ये गज़ब कोहराम छा गया
पैसे वाला जो कहता था खुद को आमीर वो जद्द में आ गया॥
सब इन्सान हैं हम मिट्टी के यहीं पर सब खो गया
जो! था बेखबर इस दिखावटी दुनिया से वो खुशी खुशी सो गया॥

~ खेम चन्द

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