भारत में हर साल शहीद दिवस मनाया जाता है, इस दिन लोग स्वतंत्रता सेनानी और शहीद हुए सैनिकों को नमन करते हैं। भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को सलाम करतीं हुई कुछ पंक्तियाँ कलमकार इमरान संभलशाही द्वारा श्रद्धांजली स्वरूप समर्पित हैं।
उनका था, आवाज़ दबाना
इन्कलाबी नारो को मिटानाधधक रही थी, हर दिल में जब
आज़ादी पाने के चाहत
लहू का हर एक कतरा मिलकर
निकल पड़ी, करने को आफ़तहर वीरों ने बस ठानी थी
है देश को, आज़ाद काराना“मां” के लाल इकठ्ठे होकर
कूद पड़े जंगे-आज़ादी में
अंग्रेजो के बाल पकड़कर
सब फेंक दिए थे, बरबादी मेंधरा के पूत मिलजुलकर
बोले पड़े, है आज़ादी दिलानासहस्र-हजारों में इक सोना थे
भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु
अपने इन्कलाबी नारो से सबने
किए, फतह का अभियान शुरूगोरो को छत्ठी, याद दिलाकर
लिए शपथ, सब गोरों को मिटाना“मां” के सपूत जंगे-आज़ादी में
मुस्कुराते हुए ही झूल गए
“लहू” से अपने, सींच_सींचकर
भारतमाता को, फूल दिएसब ने दिए, हम वतनों को
मिलकर, हमें है भेद मिटाना“मार्च तेईस” को “शहीद” हुए जब
देश रो रहा था, हो गमगीन
हर “मां” की आंसू रो-रोकर
स्वर्ग मिले, बोली “आमीन”दूध की नहरों बीच
ले जाना तुम,खूब सैर करानाहर हिन्दुस्तानी, अब मिलकर
नमन किए है, उन्हीं “सुयश” को
हाथ जोड़े, उद्घोष “बन्दे_मातरम” से
हर वर्ष मनाते है, “शहीदी दिवस”जब तक सूरज चांद है बाकी
“शहीदों” का ही गीत है गाना~इमरान सम्भलशाही
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