उनको भी याद करो जो लौट के घर को न आये,
गांधी, बापू की धरती को, जिन्होने है जन्नत बनाये।
उनको भी याद करो जो लौट के घर को न आये।
बलिवेदी को परिणय वेदी, फांसी को वरमाला गाये।
वे भी तो अपनी भरी जवानी में, देश को प्राण चढ़ाये।
माँ चुनरियां धानी बनी रहे, खुद को बसंती बनाये।
जिनको फिकर नहीं, अपने घरों की, देश को घर जो बताये।
हँसते हँसते फाँसी जो झूले, भारत को अमर बनाये।
आज शहीदी दिवस पर ‘किशन’ क्यूँ, आँख तेरी भर आये।
उनको तो याद करो, जो लौट के घर को न आये।
~ डॉ. कन्हैयालाल गुप्त ‘किशन’