मई २०२०- अधिकतम पढ़ी गई कविताएं

MAY-2020: १) वो दिन ~ बिभा आनंद • २) बांसुरी ~ मधुकर वनमाली • ३) रिश्तों का दौर~ चुन्नीलाल ठाकुर

यादों की कमी नहीं होती है, हम उन यादों के बारे मे कितना लिखें? कभी कभी तो शब्द ही कम पड़ जाते हैं या फिर कलम थम जाती है, किन्तु यादें खत्म नहीं होतीं हैं। कलमकर बिभा आनंद भी उन दिनों की कुछ यादों को इस कविता में सिमेटने की कोशिश की है।

बिभा आनंद
कलमकार @ हिन्दी बोल India
SWARACHIT869

१) वो दिन

यूँ तो अक्सर यादों की बरसात होती है,
गुजरे लम्हों में बीते पलों की एहसास होती।

वो पहला दिन आँसूओं की बरसात हुई थी,
नये माहौल में थोड़ी अजीब ख्यालात हुई थी।

गुजरते वक्त के साथ लम्हा दर लम्हा बीतता गया,
नई जगहों पर सब अपना-सा लगता गया।

शनिवार को समय से पहले मेस जाना,
दोस्तों के साथ टीवी रूम में खो जाना।

पीछे बेंच पर बैठ साथियों का मजाक उड़ाना,
हाॅस्टल में दूसरों की एक्टिंग कर हसँना।

सरस्वती पूजा से शिक्षक दिवस का इंतज़ार,
एसेम्बली हाॅल के कार्यक्रम से था एतवार।

बस यादें रह गई लफ्जों की कमी है,
कितना लिखूँ उन पलों के सामने शब्दों की कमी है।

कलमकार मधुकर वनमाली ने बांसुरी की कहानी अपनी इस कविता में बताने का प्रयास किया है। वह हमसे बात कर पाती तो शायद यही कहती

मधुकर वनमाली
कलमकार @ हिन्दी बोल India
SWARACHIT802

२) बांसुरी

वनों में उगता घना हूँ
बेंत का कोमल तना हूँ
कोई जाके काट लाया
आह कैसा घात पाया

छील के चिकना हुआ हूँ
एक से कितना हुआ हूँ
मले मुझ पे तेल देखो
मनुज का यह खेल देखो

क्या हुआ जो खोखले हैं
छिद्र मुझ में कई बने हैं
पुत गया है रंग मुझ पे
छैलों का है संग मुझ से

देवता ने प्राण फूंका
कोयलों के जैसे कूका
जीवनों का गान सुन‌ लो
बांसुरी की तान सुन लो

क्षीण होगी वायु लेकिन
छिद्र अपने माप का है
यह ध्वनि कब तक रहेगी
अंत इस आलाप का है

हम सभी के जीवन में रिश्ते बहुत जरूरी होते हैं, किंतु आजकल अनेक रिश्ते स्वार्थवश निर्मित हो जाते हैं और कई करीबी रिश्तों में स्वार्थ जन्म ले लेता है। कलमकार चुन्नीलाल ठाकुर की कविता पढ़ें जो रिश्ते के बारे में बताती है।

चुन्नी लाल ठाकुर
कलमकार @ हिन्दी बोल India
SWARACHIT722

३) रिश्तों का दौर

अब अपनो में कहाँ प्यार रहा
आधुनिकता के इस दौर में,
रिश्ता खून का हार रहा
अब अपनों में कहाँ प्यार रहा।।

सब लगे है खिंचा-तानी में
अपनों की,
अब नहीं किसी पर एतबार रहा
अब अपनों में कहाँ प्यार रहा।।

सवार्थ सिद्धि तक सब प्यारे
न किसी का किसी पर कोई
आभार रहा,
अब अपनों में कहाँ प्यार रहा।।

मानव, मानव से डर रहा
अब कहाँ कोई किसी का
यार रहा,
अब अपनों में कहाँ प्यार रहा
अब अपनों में कहाँ प्यार रहा।।

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