कलमकार शहंशाह गुप्ता की कविता “मैं और तुम” पढ़ें, जिसमें स्वाभिमान, विरह और प्रेम की झलक है। कविताओं के जरिए हम उन बातों को भी जता सकते हैं जिन्हें कहने से कतराते हैं।
मुझे आँखों में भरने की कोशिश न करो,
मैं घना तो हूँ ही, बड़ा बहुत हूँ…
कभी पलके उठा के देख भर लेना,
मैं निकला अकेले में भी तो तुझ सा बहुत हूँ…
कभी मैं छू जाऊ तो सिहरन तो होगी ही,
गर चूम जाऊ तो ठंडक तो होगी ही…
बान्हे उठा के इस्ताबाल कर लेना,
मैं साँस भरने भर की हवा बहुत हूँ…
रुक्सारों पर जब जब ले आओगी कोई हया तुम गुलशन सी,
उडते आँचल की लहरों में सागर सा दम लिए,
मैं छुप के देख लूँगा तुम्हारी अंगडाईयां हवा में,
मरते हैं सब लिए मौसम की ये रुसवाईयां,
पर तुम्हे देखने को मैं तो जिया बहुत हूँ…~ शहंशाह गुप्ता ‘विराट’
हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है। https://www.facebook.com/hindibolindia/posts/387846772122501
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