इरफ़ान आब्दी मांटवी ने इन पंक्तियों में अपने मन की बात हम सब से साझा की है। आदर, प्रोत्साहन, संघर्ष और सरलता की बातें हमारा मनोबल बढ़ाने में प्रेरक सिद्ध होती हैं।
मैं अपने अश्क में खुद को भिगो रहा हूं अभी
खता को अश्के नेदामत से धो रहा हूं अभीमुझे ना चाहिए तकिया किसी भी तकिये का
मैं मां की गोद में सर रख के सो रहा हूं अभीमेरे मेज़ाज से नफ़रत रही है सूरज को
मै हमकलाम जो जुगनू से हो रहा हूं अभीनिकाल पड़ा हूं मैं खुद को तलाश करने को
मैं अपने आप में खुद को ही खो रहा हूं अभीकिसी भी हाल में सौदा ज़मीर का ना करो
मै अर्ज़ ए नौ में यही बीज बो रहा हूं अभीमिले जो बार कज़ा के तो मैं उठा भी सकूं
तभी हयात के हर बोझ ढो रहा हूं अभीमैं बारिशों में कभी धूप की हरारत में
घरौंदा गौर से देखा तो रो रहा हूं अभी~ इरफ़ान आब्दी मांटवी
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