अब वो दोस्त बड़े याद आ रहे हैं
जिनसे गुफ्तगू किए बिना दिन बीते जा रहे हैं
अब वो जमघट बड़ा याद आ रहा है
जहां सन्नाटा अपना घर बना रहा है
अब वो दिन बड़े याद आ रहे हैं
जिनकी शामें हमें सुहानी लगती थीं
अब वो शामें बड़ी याद आ रही है
जो हमें आपस में मिलाने लगती थीं
चौपाल सजती थी हम किस्से सुनाते थे
अपने गमों को हम साथ में भुलाते थे
अब उन कहानियों का बोझ सर पर है
किसे सुनाएं सब अपने-अपने घर पर है
फेसबुक और व्हाट्सएप में वो बात नहीं है
कुल्हड़ वाली चाय और वैसी मुलाकात नहीं है
पाबन्दियों की जद में आकर सब खाक हो गया
उड़ता हुआ धुआँ भी जैसे राख हो गया
अब वो दोस्त बड़े याद आ रहे हैं
जो हमें समस्याओं का समाधान बताते थे
अब वो पल बड़े याद आ रहे हैं
जब साथ बैठकर हम पहेलियां सुलझाते थे
अब वो दोस्त बडे़ याद आ रहे हैं
जिनसे गुफ्तगू किए बिना दिन बीते जा रहे हैं
~ सत्यम ओमर