जन्नत का दूसरा नाम “मां” है

या खुदा!
मुझे सुख नहीं चाहिए!
दुख नहीं चाहिए!
मुझे जगत का चर अचर नहीं चाहिए!
मुझे गगन तारे चांद भी नहीं चाहिए!
नहीं चाहिए मुझे अप्सराएं!
नहीं चाहिए मुझे खुशियां व सौगात!
खेत खलिहान,हरियाली भी नहीं चाहिए!
मत देना तुम मुझे शीतल वायु!
मत देना तुम लंबी आयु!
मत देना आंखों में ठंडक!

मेरे ख़ुदा!
मुझे तो बस मेरी “मां” दे दो!
मुझे बस “मां” ही चाहिए!

मै कहीं भी रहूं व “मां” मेरी कहीं भी रहे!
बस “मां” चाहिए तो बस “मां” चाहिए

क्योंकि मै जानता हूं
जन्नत का
दूसरा नाम “मां” है!

~ इमरान सम्भलशाही

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