माँ से बिटियाँ का
स्नेह होता है लाजवाब
बिटियाँ को सुलाती अपने आँचल में
लगता है जैसे फूलों के मध्य
पराग हो झोली में ।माँ की आवाज कोयल सी
और बिटियाँ की खिलखिलाहट
पायल की छुन -छुन सी
लगता है जैसे मधुर संगीत हो फिजाओं में ।माँ तो ममता की की अविरल बहती नदी
बिटियाँ हो जैसे कलकल सी आवाज
निर्मल पावन जल की
लगता है जैसे पूजते आरहे सदियों से इन्हे ।माँ होती चांदनी सी
बिटियाँ हो सूरज की पहली किरण
दोनों देती है रौशनी
अपने-अपने पथ/कर्तव्य की
लगता है भ्रूण – हत्या का अंधकार हटा रही होमाँ-बिटियाँ से
जन्म लेते है कई रिश्ते
ये होती है समाज का आधार
दोनों के बिना होता है जीवन सूना
लगता है जैसे इनमे बसती जीवन की सांसे ।~ संजय वर्मा “दृष्टि”