सारी बलाओं से अकेली ही लड़ती है माँ

हर गम को ख़ुशी में बदलती हैं माँ,
सारी बलाओं से अकेली लडती हैं माँ।

जब भी आये कोई भी परेशानियां,
निर्भीक होकर ढ़ाल बनती हैं माँ।

ऊँगली पकडकर चलना सिखाया,
निश्छल, निस्वार्थ प्रेम करती हैं माँ।

ममता के आँचल की प्रतिमूर्ती है,
हर दिन कसौटी पर ढ़लती है माँ।

हर मर्ज की दवा रखती है माँ,
कभी दुलारती तो कभी ड़ाटती हैं माँ।

~ करन त्रिपाठी

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