शब्द नहीं, संसार है माँ

शब्द नहीं, संसार है माँ
खुद में ही त्योहार है माँ।
हो गरीब या अमीर की
एक पवित्र प्यार है माँ।
दुख, सुख, फिक्र, सब्र
रात, दिन इन्तजार है माँ।
गुस्सा, झिड़क, चिंता, खुशी
लाड़ ओ पुचकार है माँ।
अच्छा, बुरा, पसंद, नापसंद
बच्चों की जानकार हैं माँ।
लोरी, थपकी, मान, मनौवल
डांट और फटकार है माँ।
घर में सब अभिनय करते
सबसे अहम किरदार है माँ।

~ अजय प्रसाद

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