माँ तेरा चेहरा तो मुझको
याद नहीं है
बचपन में था
खोया तुझको।
लेकिन तेरा बेटा हूँ मैं
केवल यह सुधि
एक अनोखा सम्बल
दे देती है मुझको।।
आँख मूँदकर जब भी
मन में देखा तुझको
तुझको वहीं कहीं पर
ही मैंने पाया है।
तेरा बेटा हूँ तुझ बिन
जीना है मुझको
सोचा तो सूरज-सा
भीतर उग आया है।।
एक प्रेरणा दिये सरीखी
मुझमें जलकर
तू मुझको अनन्त पथ
हे माँ! दिखला देती।
मेरी माँ! तू गई नहीं है
मुझे छोड़कर
तेरी छाया मुझको
जीना सिखला देती।।
~ गौरव वाजपेयी “स्वप्निल”