इश्क के शुरुआती दिनों में बड़ी कशमकश सी रहती है, डर के साथ-साथ बहुत कुछ बताना और जानना होता है। कुमार किशन कीर्ति ने अपनी एक रचना (मेरी प्रियतमा) प्रस्तुत की है जो ‘इश्क की राह’ से प्रेरित है।
ओ मेरी प्रियतमा
तुझसे मैंने प्यार ही माँगा है
कोई दौलत नही माँगी है
अगर तू इंकार कर देगी
तो भी यह दिल तेरे लिए ही हाजिर है
दुनिया में यूँ तो हसीं बहुत हैं
पर इन निगाहों ने
तुझे ही पसंद किया हैं
अब तू ही बता ओ मेरी प्रियतमा
इसमे मेरा क्या कुसूर है?
तुझे क्या पता किस हद
तक तुझसे प्यार करता हूँ?
तू तो सुकून से सोती है,पर
तेरी याद में रातें गुजारा करता हूँ
ओ मेरी प्रियतमा
अपनी लबों से मोहब्बत का
इजहार तो कर दे
बड़ा बेकरार हूँ मैं,कभी
तो मेरा नाम पुकारा कर ले
मैं भी बड़ा जिद्दी आशिक हूँ
तेरा पीछा यूँ ना छोडूंगा
तू कितना भी सितम कर ले
मैं हँस कर सहता जाऊँगा
ओ मेरी प्रियतमा
तुझसे मैंने प्यार ही माँगा है
कोई दौलत नहीं माँगी है
~कुमार किशन कीर्ति
हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
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