इच्छा यही है की पंछी बनकर
विचरण करूँ इस गगन में
ना कोई डर, ना कोई अभिलाषा
हो मेरे मन में
इच्छा यही है की बन जाऊं
बादल और बरसू उस
वसुधा पर जहाँ….
जहां केवल प्यास हो, और
उस प्यास में मुझे ही पाने की इच्छा हो
इच्छा यही है की बन जाऊं शशि और
अपनी शीतल चाँदनी से उन्हें
राहत पहुँचाऊँ जो मेरे
चाँदनी की शीतल उजालों में
सुख पाना चाहते हैं, पर डरता हूँ
यह सब बताने से क्योंकि
कब, क्या हो जाए?
यह जिंदगी कब मौत का
सफर बन जाए, फिर भी
इच्छा यही है की कर जाउ कुछ
ऐसा काम जिससे दीन-दुखियों
की दिलों में भी अपनी एक
जगह बना पाऊ