कलमकार विजय कनौजिया कहते हैं कि तुम दुःख मेरे नाम करो। प्रेम में कभी दुख न देना, वहाँ केवल खुशियों का आशियाना होना चाहिए। दुख आएँ भी तो मिल बाटकर उन्हें गायब कर देना चाहिए।
प्रथम प्रेम का प्रथम निवेदन
तुम मेरा स्वीकार करो
पूरी हो मेरी अभिलाषा
बस थोड़ा उपकार करो..।।मेरी चाहत के पन्नों पर
नाम तुम्हारा अंकित हो
प्रेम की स्याही से लिख दो तुम
बस मेरा ये काम करो..।।मैं जीवन ये अर्पण कर दूं
आदेश मुझे थोड़ा दे दो
हो प्रेम अंकुरित अपना भी
बस थोड़ा सा प्रयास करो..।।मिले मुझे भी प्रेम आपका
प्रेम पुजारी मैं बन जाऊं
अपना हर सुख मैं दे दूंगा
तुम दुःख मेरे नाम करो..।।~ विजय कनौजिया