प्रकृति और प्रेम ~ अनिरुद्ध तिवारी
हिलती डोलती हवाओं के साथ बारिश का आना
और पेड़ पौधे का मस्त हो जाना,
अनुभव करो प्रकृति प्रेम को!
ना कोई गिले-शिकवे , ना कोई शिकायत।
जैसे झूमती है प्रकृति, अपने तन बदन को भिगोकर
बारिश के वक्त, ध्यान से देखना किसी पौधे को
कितना खुश होकर प्रेम को जताने की चेष्टा करती है
ठीक तुम्हारी तरह
सच कहा न मैने!
बूंदों की चहलकदमीयों को समझा है तुमने,
ठीक वैसे ही,
जैसे अल्फाजों को तुम होठों मे दबाकर रखती हो
कभी मन से सुनना बारिश कि धून को
और साक्षात अनुभव करना प्रेम को,
हृदय में जो सुकून का आभास होता है
शायद वो सुकून कहीं ना मिले।
महसूस करो प्रकृति प्रेम को
प्रेम में विश्वास की परिभाषा
तुम्हें समझ में आ जाएगी।
खग कलरव नव गान ~ श्याम सुन्दर ‘कोमल’
कुण्डलियाँ छंद
झूम रही हैं डालियाँ, विहँस रहे हैं फूल।
पृथ्वी ने लहरा दिया, सुरभित हरित दुकूल।
सुरभित हरित दुकूल, भ्रमर हैं गीत सुनाते।
खग कलरव नव गान, प्रभाती मधुमय गाते।
कह ‘कोमल’ कविराय, रश्मियाँ चूम रही हैं।
नव पल्लव मृदु गात, तितलियाँ झूम रही हैं।
प्राची दिश अरुणिम हुई, जैसे उड़ा गुलाल।
रूपसि ऊषा के नवल, गाल हुये हैं लाल।
गाल हुये हैं लाल, सुनहरी किरणें रवि की।
ऐसी रम्य मनोहर बेला, क्या कहने रवि छवि की।
कह ‘कोमल’ कविराय, बात यह सुन्दर सांची।
रवि को रूप सुहाय, विहँसती सुन्दर प्राची।
बाघ की व्यथा ~ स्नेहा धनोदकर
International Tiger Day
अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस
29 July
कथाओं के इस देश मे,
मेरी भीं एक कथा हैं,
सुन लो सब,
कहता हैं बाघ,
मेरी भीं एक व्यथा हैं….
जंगल होते जा रहे कम,
हमारी भीं हैं ऑंखें नम,
कोई ना पूछताछ हमको यहाँ,
भरते बस सब नाम का दम…
खोल दियें हैं कई उद्यान,
देता नहीं कोई उन पर ध्यान,
हालत हमारी हम जानते,
जैसे तीर से निकली म्यान…
देखने हमेशा सब आते हैं,
देख कर खुश हो जाते हैं,
हम क्या चाहें कोई ना जाने,
बस दर्शन सभी को भाते हैं…
थोड़ा कर लो तुम भीं मान
मैं तो हूँ भारत की शान,
राष्ट्रीय पशु कहलाता हूँ,
मैं भारत का हूँ सम्मान..
पेड़ लगाओ, वन बचाओ,
इतनी सी मेरी हैं मांग
थोड़ा अब तो कर लो त्याग,
तभी तो बचेगा ये बाघ।