कलमकार मनीषा मीशा ने यह कविता साझा की है जो मन में उठने वाले विचार और भावों को वयक्त करती है। हम सभी के मन में तरह-तरह की भावनाएं, इच्छाएं और प्रश्न हमेशा उठते रहते हैं। कविताएँ उन्हें जाहिर करने का सरल तरीका है।
चाहत इस बावले से मन की
जो हूं जैसी हूं
क्यों न कोई ऐसे ही
चाहे मुझे …ना उलझे मेरे बेमतलब
से सवालों कि डोर से
थाम के हाथ मेरा क्यों न
इन सब से निकाल लेे
जाए मुझे …मेरे अल्हड़ से प्रेम की
शिकायतों में न तलाशें
उम्र को वो मेरी
एक मासूम सी चाहत मेरी
समझ बेइंतेहा चाहे मुझे …गर थामें तो उम्र भर के लिए मुझे
यूं ही मेरे गुनाहों कि एक एक
खरोंच न दिखाए मुझे …चाहत को मेरी गहराई से जाने
प्रेम को गुनाह न बताए कभी
चले तो हर हाल संग चले
बीच राह न छोड़ जाएं मुझे …कुछ इस तरह मिले और फिर लौट
कर न जाए कभी प्यार इतना करे
की अपनी जिंदगी बनाए मुझे …जैसी हूं ऐसे ही कोई
चाहे मुझे …~ मनीषा मीशा
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