आधा निवाला खुद खा आधा मुझे खिलाती थी।
अपने रक्त की बूँद-बूँद से वो मुझे सींचती थी।।
ख्वाहिशें उन्होने अपनी सारी जलाई ।
जब मैं उनकी कोख से गोद में आई।।
कोई ना देखे मुझे बुरी नजर से इस बात की वो फिक्र करती।
धीरे-धीरे मैं बड़ी हो रही हूँ इस बात का वो जिक्र करती।।
अँगुली पकड़ उन्होने मुझे चलना सिखाया।
पर अकेले मैं घर से निकली इस बात से उनका मन घबराया।।
प्यार से वो मुझे सौन चिरैया कहती ।
उड़ जाऊँगी एक दिन ये सोच वो भावनाओं में बहती।।
तेज धूप में अपने आँचल से वो मुझे ढ़कती।
ज़माने की नजर से बचाने के लिए वो मुझे काला टीका लगाती।।
मैं उसकी परछाई हूँ हर दिन वो कहती।
मेरे लिए तो वो ज़माने के ताने तक सहती।।
अपने अरमानों का गला घौंट मेरे ख्वाबों को पूरा किया।
मेरा माँ ने अपना अस्तित्व दाँव लगा मुझे नया अस्तित्व दिया।।
हाँ माँ के प्रेम में सम्पूर्ण जहां समाया हैं।
इसलिए तो वो खुदा बार-बार धरती पर आया हैं।।
इस जहां में माँ से बड़ा कोई सत्य नहीं हैं।
माँ के बिना जहां का कोई अस्तित्व नहीं हैं।।
~ दीपिका राज बंजारा