अब एक तलाश हो तुम

अब एक तलाश हो तुम

परिजनों से बिछड़ने के बाद हमारी आँखों को उनकी तलाश रहती है कि कब/कैसे वे मिले और उस पल को यादगार बनाया जाए। कलमकार विजय परमार की पहली प्रस्तुती जिसे उन्होंने शीर्षक दिया है- अब एक तलाश हो तुम।

हाँ अब एक तलाश हो तुम,
यही नाम दिया है तुम्हारे लिए मेरे मन ने
तुमने वादा तो नही किया है कि मिलेगें हम,
पर फिर भी तुम्हारा इंतजार हैं
कब आओगे मे नही जानता
पर कभी तो जरूर, मेरे लिए वही पूनम की रात होगी
आसमान उस शाम को भी धुधंला ही होगा,
पर मुझे बो रास्ता साफ नजर आयेगा
रेशम से तुम्हारे बाल उस दिन भी आधे खुले होगे,
आंखों में वही गहरा काजल होगा,
चांद से चेहरे पर प्रश्न करता एक असाधारण भाव होगा,
में फिर किसी किशोर की तरह खिल उठूंगा,
मानो दोनो जहाँ की खुशी मुझे मिल गयी
“मेरी तलाश अब पुरी हो गयी हो”

~ विजय परमार

हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है। https://www.facebook.com/hindibolindia/posts/391520965088415

Post Code: #SwaRachit143

Leave a Reply


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.