कलमकार सुबोध कुमार वर्मा की रचना ‘एक सुबह’ पढ़ें। वैसे तो हर सुबह सुहानी लगती है लेकिन कभी किसी सुबह कुछ अच्छा फैसला हम ले लिया करते हैं।
एक ख़्वाब बुन लिया मैंने,
एक शहर चुन लिया मैंने
सुबह होते एक घाव भर दिया मैंने
वहीं एक शहर की रोशनी।वहीं सुबह की अल्हड़ हवा सी
ओ चाय की चाशनी,
अदरक, इलाइची की दोस्ती सी
ओ सुबह की ताज़गी।दिल मे सुकून भरी
बादलों में उमंग दिखी
चहचहाते रंग-बिंरगे
तितलियों में शहर दिखी।एक ख़्वाब बुन लिया मैंने
एक शहर चुन लिया मैंने।~ सुबोध कुमार वर्मा