एक घाव पुराना बाकी है,
उनको भी भुलाना बाकी है,
जब जब दुनिया मे दर्द बंटा है,
अपनों को सुनाना बाकी है।।
जब याद हमारी आएगी,
उनको भी ऐसे तड़पायेगी,
ना सोच था मेरा उन जैसा,
सपने में हमें तू रुलायेगी,
धागे कच्चे का जोड़ नहीं,
दिल को समझाना बाकी है।।
एक घाव…….
हर बात पे वो हँसती रहती,
पगला मजनू हरपल कहती,
जब जान मेरी तू थी ही नहीं,
कैसे मेरे गम को तू सहती ।।
जैसे तड़पा हूँ बिन तेरे,
तुमको तड़पाना बाकी है।।
एक घाव………
~ श्रवण कुमार “शाश्वत”