कभी भीड़ से भरा शहर था मेरा,
यहां शोर के संग होता था सवेरा,
फिर आया एक वायरस कोरोना,
और डाल दिया उस ने यहां डेरा।
इस वायरस ने पूरे शहर को घेरा,
ज्यों शिकार पर निकला है बघेरा,
गिरफ्त में इसकी आने लगे लोग,
अब अगला नंबर हो सकता तेरा।
इस वायरस को पसंद है जमघट,
यह बस्ती को बना देता है मरघट,
गर बचना चाहते इसके प्रकोप से,
तो घर में रहो, जाओ भीड़ से हट।
डॉक्टर, पुलिस और हर कर्मचारी,
सेवा में लगे हुए वो आज तुम्हारी,
अपना दायित्व तो वो निभा रहे हैं
अब तुमको है निभानी जिम्मेदारी।
अब घर में रहो, खुद को कैद करो,
तुम घर से बाहर ना अब पांव धरो,
खुद को बचाकर सब को बचाएंगे
ना होंगे संक्रमित यह प्रतिज्ञा करो।
यह देश हम सब से मिलकर बना,
इस पर छाया है आज अंधेरा घना,
जब तक ना निकले उजला सूरज,
तब तक सबका बाहर आना मना।
अब घर पर रहकर ही इसे संभाले,
इसको है बचाना यह लक्ष्य बना लें,
हम करें प्रार्थना मिलकर प्रकृति से,
हम रूठे हुए अपने रब को मना लें।
~ देवकरण गंडास “अरविन्द”